लेखक की कलम से

महिलाओं के साथ हो रही छेड़खानी, अपराधों के कारण और समाधान…

 

महिलाओं पर हो रहे लगातार हिंसा, अत्याचार, दुर्व्यवहार, भ्रूण-हत्या से भारतीय समाज शर्मसार है। कितनी शर्म की बात है जहां यह पहला देश है। जिसमें महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला। वहीं आज विश्व में बलात्कारियों की सूची में भारत अग्रणी देश बन गया है और हम फिर भी हाथ-पर-हाथ रख बैठे सिर्फ माला जपते रहें। “मेरा भारत महान है…।”

हम आत्मकेंद्रित और आत्ममुग्ध देवीयां …

हालांकि शास्त्रों ने कहा है इसलिए हम स्त्रियां देवी हैं।

है न “मैम” ?

पर मानता कौन है… शासन, प्रशासन …?

तभी तक न जब आप किसी दल की मुखिया हैं … ?

बाद उसके आप कौन हैं …?

स्त्री महज स्त्री। है न..?

चूंकी आप स्त्री हैं और पूजनीय देवी भी, तो आपको सौगंध है भक्तजनों की कि आंख मूंदकर घर के भीतर मूर्तिमान हो जाइए।

गली में, नुक्कड़ पर, लंबी सड़क किसी भी बेटी-बहन की इज्जत लूटी जा रही हो, उसे जलील किया जा रहा हो, अश्लील टिप्पणी की जा रही हो, फिकरे कसे जा रहें हो उधर तनिक भी ध्यान न दीजिए।

तुच्छ जन हैं ये न ….!!!

आत्मकेंद्रित हो जाइए अपने नाम के जयकारों को सुनने के लिए हे देवी! नहीं तो भारत भूमि पर आए दिन हो रहे जन्मी-अजन्मी बेटियों का करुण -क्रंदन आपका ध्यान भंग कर देगा।

देखिए अपने भरे खजाने के बहुमूल्य रत्नों की ओर, जी भर कर देखिए और उसकी जगमग-जगमग में मुग्ध भूली रहिए कि आखिर ये खजाने कैसे और कहां से एकत्र हुए।

भूलकर भी मत पूछिएगा अपने भक्तों से देवी, कि यह रुपयों- गूंथे हारों के पुष्प लोकतंत्र के किस बाग़ से आए हैं।

किस माली ने खून -पसीने बहा कर इन्हें सींचा है ?

देवियां इन फिज़ूल के चक्करों में नहीं पड़तीं। ये गर्विताएं कहां घूमतीं हैं मलिन बस्तियों में !! आप अकेले नहीं हैं देवी …हम स्त्रियां आपकी अनुगामी हैं… देवी शब्द से अपार प्रेम करने वाली, इस शब्द की उत्कट लालसा रखने वाली। हम सभी ..हम सभी। आप ही की तरह आत्ममुग्ध और आत्मकेंद्रित रहने वाली हम तभी रौद्र रूप दिखाती हैं जब अपनी और अपनों की जान पर बन आती है। जब निरंकुश विलासिता का सिंहासन डोलने लगता है। तब भी हमें सिर्फ़ अपना ही ख्याल रहता है …सिर्फ़ अपना। कोई और बहू-बेटी मरे-जिए, हमसे क्या मतलब !!

एकबार मैं “स्त्री” फिल्म देख रही थी, जिसके एक दृश्य में गांव के लोग एक चुड़ैल, जिसे ‘स्त्री’ के नाम से प्रचारित किया गया है, से बचने के लिए अपने-अपने घरों के सामने लाल स्याही से एक टोटका लिखते हुए दिखाई देते हैं।

“ओ स्त्री ! तुम कल आना।”

उनका विश्वास है कि घर के बाहर यह टोटका लिख देने से वह घर वालों को अपना शिकार नहीं बनाएगी।

तभी मेरे साथ फ़िल्म देख रहे मेरे एक मित्र की आवाज आई, “कल नही, ओ स्त्री तुम कभी मत आना” सारे लोग इस मजाक में कही गई बात पर ठहाकों लगाने लगे।

फिल्म पूरी हुई, परंतु इस मजाक में कही गई बात को लेकर मेरे ज़हन से स्वत: ही कुछ विचार उत्पन्न हुए…।

वो धरती ~

जहां एक पतिव्रता को अपनी पवित्रता साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड़ी!

जहां एक स्त्री की कोख में जन्म से पहले ही एक भावी स्त्री को मार दिया जाता हो!

जहां आज भी एक स्त्री के विवाह में दहेज का दानव मुंह खोलकर खड़ा दिखाई देता हो!

जहां कोई स्त्री केवल तीन बार ‘तलाक-तलाक-तलाक’ सुना कर दर-दर ठोकरें खाने को छोड़ दी जाती हो!

जहां पुरुष से ज्यादा काबिलियत रखने के बावजूद एक स्त्री पुरुष से कम वेतन पाती हो!

जहां राह चलते गिद्ध एक स्त्री को अपनी आंखों से ही नोच डालते हों!

जहां एक बच्ची की कच्ची उम्र भी उसके बलात्कारियों का मन पिघला नहीं पाती हो!

जहां कार्यस्थल पर एक स्त्री का भरपूर शोषण होता हो!

जहां एक स्त्री केवल भोग की वस्तु समझी जाती हो!

तो ऐसी धरती पर ‘ओ स्त्री! तुम कभी न ही आओ तो ही अच्छा हो शायद…।

वैसे मैं जानती हूं कि तुम आए बिना रहोगी तो नहीं, जिद्दी हो, तुमसे बड़े हौसले हैं तुम्हारे, जिनकी ताकत से एक दिन तुम स्वयंसिद्धा बन कर रहोगी। और मुझे पूरा विश्वास है कि तब उस दिन पुरूष प्रधान समाज को भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए बिल्कुल ऐसा ही संघर्ष करना पड़ेगा जो आज तुम कर रही हो !

इसलिए –

ओ स्त्री ! तुम कल नहीं, आज ही आना… !

 

हमारे हिन्दू समाज में शोषण करने के लिए कई तरीके ईजाद किए हुए हैं लेकिन सबसे आसान और घातक तरीका है- प्रेम।

 

प्रेम को बेशक़ इस दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास कहने के बावजूद प्रेम शब्द का सर्वाधिक उपयोग शारीरिक संबंध बनाने के लिए किया जाता है, प्रेम के नाम पर लड़कियों को, खास करके कम उम्र की बच्चियों को बरगलाया जाता है। खासकर जिन लड़कियों को घर में सहज माहौल नहीं मिलता, उनका घर की देहरी, छत पर खड़े होना मना होता है, जिन घरों में पिता-बेटियों के सर पर हाथ नहीं फेरते। जहां किसी लड़के से हंसकर बात कर लेने भर से बाप-भाई थप्पड़ मार देते हैं, या कई घरों में पिता बेटी पर हाथ नहीं उठाते, मां से पिटवाते हैं।

ऐसी लड़कियों को जब कभी परेशान देखकर उनकी दोगुनी उम्र का शिक्षक सर से पीठ पर ब्रा टटोटले हुए हाथ फेरते हुए कहता है तुम उदास अच्छी नहीं लगती, खुश रहा करो तो उसे लगता है यही फिक्र प्रेम है…।

 

जिन घरों में भाई कभी बहन को गले नहीं लगाते, वो लड़कियां जब सुकून के लिए कुछ देर प्रेमी को गले लगाती हैं जो गले लगाने के बहाने अपनी गन्दी नियत को अंजाम देता है, लड़की को लगता है यही छिछोरापन प्रेम है…।

 

इन लड़कियों के पीछे जब कोई सिरफिरा लड़का आशिक़ बनकर घूमता है, उनके लिए हाथ काट लेता है तो उसे लगता है यही पागलपन प्रेम है…।

 

घर में विपरीत लिंग के लोगों से सहज शारीरिक स्पर्श मात्र तक से जितनी दूरी बनाकर लड़कियों को बड़ा किया जाता है, उतनी ही जल्दी वो प्रेमी के स्पर्श से पिघलती हुई खुद को उसके सामने समर्पित कर देती है। क्योंकि वो शुरू में वासना और प्रेम से भरे स्पर्श में अंतर ही नहीं कर पाती।

 

लेकिन यह एक बहुत बड़ा फेलियर भी है हमारे पारिवारिक ढांचे का, जहां बेटियां न जाने कितनी बार घर में ही भाई, चाचा, दादा, अंकल से यौन शोषण की शिकार होती हैं, लेकिन आपने अपनी बेटियों को इतना सहज माहौल भी नहीं दिया होता कि वो आपसे अपना दर्द बांट सके…।

समाज का एक तबका इतना असंवेदनशील है जहां मां भी बेटी की सिसकियों की आवाज़ नहीं सुन पाती। बेटी का गुमसुम होना कामचोरी और आलस लगता है। इन बेटियों का प्रेम के नाम पर शोषण करना सबसे आसान होता है। हमारे समाज के बड़े तबके को बेटियां पालना ही नहीं आता। या और सही शब्दों में कहूं तो भारतीय समाज के बहुत बड़े तबके को औलाद पालने की तमीज़ ही नहीं है, न बेटा- न बेटी।

अभी इस समाज को और संवेदनशील और जिम्मेदार होने की ज़रूरत है…।

 

अपनी बेटी को घर में खूब प्रेम दीजिए, खूब स्पेशल फील करवाइए। उसके साथ खेलिए, उसे गले लगाइए। उसका हाथ पकड़कर चलिए। उसके मन में अपने प्रति भरोसा पैदा करिए की इस दुनिया में उसके साथ कुछ भी गलत होगा, गलत करने वाला कोई भी हो आप हमेशा बेटी के पक्ष में होंगे।

वक़्त रहते बचा लीजिए बेटियों को वरना प्रेम के नाम पर वासना का शिकार होती रहेंगी…।

हमारे समाज में महिलाओं के लिए पुरुषों के बराबर खड़े होने के अवसर तो ख़ूब दिखते हैं, लेकिन ये अवसर आभासी हैं। अक्सर, तरक्की और विकास के नाम पर स्त्री शोषण के बहाने बनाए जाते हैं। विश्लेषण में ऐसा पाया गया है कि अधिकांश स्त्रियों की सोच ऐसी होती है कि पुरुष समाज हमेशा स्त्री समाज से अलग होता है। स्त्री अपने को उससे न स़िर्फ असुरक्षित पाती है, बल्कि पुरुष के रवैये से बेतरह निराश भी होती है। उपभोक्तावादी संस्कृति में जब हर समान बेचने के लिए महिला की नग्नता को माध्यम बनाया जा रहा हो तब महिलाओं के सामाजिक सशक्तिकरण की चर्चा कहीं पीछे रह जाती है। वर्तमान उपभोक्तावादी संस्कृति में शोषण के कई अदृश्य स्तर और न दिखने वाले औज़ार मौजूद हैं, जिनके बहाने जो शक्तिशाली है, वह जाने अंजाने कमज़ोर का शोषण करता है। ऐसे मे यहां नारी उत्पीड़न तथा नारी तिरस्कार जैसी विकराल समस्या की जड़ों में झांकने का प्रयास अति आवश्यक है। नारी सशक्तिकरण के लिए जमीनी स्तर पर कार्यवाही आवश्यक है…।

 

यदि हम महिला दुष्कर्मों के कारणों को देखें तो मूल्यों के ह्रास के लिए वर्तमान में दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति एवं बढ़ती जनसंख्या, बेरोजगारी, पाश्चात्य- संस्कृति का अंधानुकरण, खान-पान और सोशल मीडिया का बढ़ता दुष्प्रभाव बालमन पर सीधा आक्रमण कर रहा है। इस पर उचित प्रतिबंध होना जरूरी है जो चैनल या आईटम फिल्मी गाने महिलाओं को समाज में सिर्फ वस्तु के रुप में परोस रहा है…।

महिला सृष्टि की आधार होती है इसे जननी कहा जाता है और वहीं असुरक्षित है। हैवानियत इतना बढ़ गया है कि इंसान को जिंदा जला दिया जा रहा है इसकी सुरक्षा के लिए महिला थानों तथा परिवार अदालतों को अधिक-से-अधिक संख्या में खोला जाना चाहिए ताकि महिलाएं बेझिझक होकर अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों के विरुद्ध न्याय की मांग कर सके। अत्याचारियों के लिए कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान तुरंत होना चाहिए, इसकी जगह लोग लड़कियों को घर से निकलने पर रोक लगाते हैं, पहनावे पर फब्तियां कसते हैं। छात्राएं पढ़ाई छूट जाने के भय से अपनी समस्या अभिभावक से बताने में कतराती है। समस्या सभ्य लड़कों की भी है वह तो हो रहे शोषण के बारे में बताता भी नहीं। इसके लिए किशोरावस्था आकर्षण एवं चुनौतियां की शिक्षा दी जानी चाहिए। केवल स्कूलों में ही नहीं जागरूकता लाने के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं, शिक्षाविद् और सरकार एवं नागरिक सभी को मिलकर स्वार्थ से हट कर प्रयत्न करना चाहिए, क्या पता कल किसकी बहन-बेटी हो!!!

नुक्कड़-नाटक का आयोजन करके, घर-घर जाकर गली चौराहे में महिलाओं के प्रति हो रहे अत्याचारों के विरूद्ध में जागरूकता फैलानी चाहिए। महिला हेल्पलाइन, महिला विकास, महिला आयोग, महिला हिंसा एवं निर्भया के नंबर की जानकारी हर एक स्त्रियों को होनी चाहिए। महिलाओं पर अत्याचार बंद करने के लिए उनको स्वयं अपने अंदर जागरूकता, आत्मबल लानी होगी आत्मरक्षा खुद करनी पड़ेगी। साथ में अपनी सुरक्षा के लिए मिर्च पाउडर, बालू कण मिलाकर और कुछ इस तरह के हथियार इलेक्ट्रॉनिक ऐलान स्मार्ट वॉच यह सब हमेशा अपने पास महिलाओं को अपनी सुरक्षा के लिए रखकर चलनी चाहिए। हर माता-पिता का कर्तव्य है बच्चों की जिस तरह से शिक्षा के लिए ट्यूशन रखते हैं उस तरह से उसको खास करके लड़कियों को मार्शल आर्ट सिखाएं। देश, समाज से बनता है और समाज, घर से और इसकी शुरुआत परिवार में मां से होती है तो उन्हें चाहिए कि बच्चों को अच्छा संस्कार दें, इसके लिए शिक्षित होना जरूरी है। बेटा-बेटी में भेदभाव करना बंद करें, लड़कों की मानसिकता में बदलाव लाना भी जरूरी है, वह घर में ही देखता है कि मां को कैसे पिटाई हो रही हैं और दूसरे दिन फिर वो पिटने वाला को ही खीर-पूड़ी बनाकर खिला रही है, उसे यही शिक्षा मिलती है कि स्त्रियों को सहना उसके फिदरत में शामिल हैं, अपने पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आप अहिंसक प्रतिरोध से आवाज़ मुखर करें। एक तरफ मुजफ्फ़रपुर की बेटी पायलट बन रही है तो दूसरी तरफ हैदराबाद, बक्सर की बेटी के साथ क्या हो रहा है…?? कितने नाबालिग गर्भवती बना दी गई है इसकी आंकड़ा भी गौण है चंद निर्भया ही सुर्खियों में है। आज महिला जितना सशक्तिकरण हो रही है, आखिर उतना ही उस पर अत्याचार क्यों..??

धिक्कार बहुत छोटा – सा शब्द है

किस किस पर रोएं जार जार

किस किस पर करें चीत्कार

हिंसा का तांडव

निर्लज्जता का बीभत्स प्रदर्शन

व्यवस्था की खामोशी

पहरुओं की बेहया हंसी

हर तरफ आग

खुली तलवारें बेख़ौफ़

जाए कहां कोई शरण मांगने

और अगर स्त्री की अस्मत को ही होना है तार-तार

तो डूब मरे यह समाज

जो न जाने किस नपुंसक खोल में दुबका अब भी दे रहा दुहाई

धिक्कार बहुत छोटा- सा शब्द है

बोलें और चबा जाएं

किसी अन्य स्त्री की इज्जत के दागदार होने तक।

 

समाज और परिवेश को ईव फ्रेंडली भी तो बनाइए।

ईव टीज़िंग, या छेड़खानी, एक बेहूदा चीज़ है, जो लड़कियां इसका शिकार होती हैं वही जानती हैं कि छेड़खानी कितनी अपमानजनक हो सकती है। मगर क्या कोई विशेष दस्ता (रोमियो जैसे कालजयी पात्र का इस संदर्भ में नाम लेना भी बुरा जान पड़ता है) इसका हल हो सकता है…? और क्या यह कोई विशेष पुलिस बल है, जो पुलिस चोरी, छिनतई और लूट-पाट तो रोक नहीं पाती, छेड़खानी कैसे रोक लेगी…?

 

छेड़खानी तो कहीं भी होती है, मेरे गांव के मेले में भी, तो क्या आप पुलिस बल को दस गुना-बीस गुना करने जा रहे हैं कि चप्पे-चप्पे पे आपकी स्क्वाड फैली हो…?

बेहतर हो कि आप सड़कों पर समुचित रौशनी की व्यवस्था करें, अधिक से अधिक महिला थाने बनाएं, बल्कि पूरे पुलिस तंत्र को ही वूमेन फ्रेंडली बनाएं जिससे लड़कियां अपने साथ हुई छेड़खानी की शिकायत दर्ज कर सकें, और उन शिकायतों पर बजाए लड़कियों को नसीहत देने के सचमुच कार्यवाई हो। और सबसे बढ़कर लड़कियों को सक्षम बनाएं, छेड़खानी अगर मौके पर ही रोकी जा सकती है तो वो लड़कियों के साहस से ही रोकी जा सकती है, नहीं तो छेड़खानी रोकने के नाम पर हमें अकसर ही युवा जोड़ों को अपमानित किए जाने की घटनाएं सुनाई पड़ेंगी, लड़के लड़कियों के आपसी मेलजोल पर बंदिशें लगेंगी ।जी हां, यह मेलजोल ज़रूरी है, आप सेक्स एजुकेशन को कोर्स में शामिल करिए और कम उम्र लड़के लड़कियों को जागरूक करिए।

इसकी चिंता छोड़िए कि लड़के लड़कियां आज इसके और कल उसके साथ घूम रहे हैं, उनके बीच के स्वाभाविक आकर्षण को मारना ही कुंठा से भरी ऐसी पीढ़ी पैदा करता है जो सड़कों पर, बसों में, सिनेमा हॉलों के अंधेरे में लड़कियों को छूने को आतुर हाथ फैलाए घूमती है, क्योंकि जब मन में प्रेम का भाव नहीं रहेगा तो बस शरीर ही शरीर होगा।

 

दूसरी बात कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था में स्त्रियों की रक्षा के नाम पर हमेशा से उन्ही पर पाबंदियों का इतिहास रहा है, इसीलिए यह डर निराधार नहीं है कि छेड़खानी के खिलाफ अभियान भी इसी ओर जाएगा और मोरल पुलिसिंग का काम करेगा, और जहां सचमुच कुछ गलत हो रहा हो उसे रोकने के लिए पुलिस को किसी अलग नाम से विशेष दस्ते की क्या ज़रूरत है, पुलिस का यही काम है, वो बस अपना काम करे, अगर सचमुच लफंगों को पकड़ा जाए तो इसमें क्या ग़लत है…??

 

स्कूल हो या कोई संरक्षण गृह, सड़क हो या कोई पूजा स्थल, स्त्रियां बस देह भर रह गई हैं, एक ओर पूजन तो दूसरी ओर मानमर्दन का खेल। यह बर्बरता उस दोगली मानसिकता की बानगी लिए है जिसमें महिला अस्मिता का कोई मान ही नहीं रहा…।

आए दिन हो रहीं ऐसी घटनाएं सभ्य समाज का असभ्य चेहरा दिखाने काफी हैं। दुष्कर्म को रोकने के लिए सरकार द्वारा कठोरतम कानून बनाए जाने के बावजूद इनके आंकड़े बढ़ रहे हैं। हर उम्र की महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और बदसलूकी की दुष्प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। यह बीमार होते समाज और बिखरते संस्कारों की भी बानगी है …।

 

सचमुच, एक भय मन में घर कर गया है। ऐसा खौफ़ जो बेटियों के पढ़ने-लिखने, आगे बढ़नेऔर सपने पूरे करने पर भारी पड़ रहा है। आखिर क्यों और कब तक व्यवस्था की लचरता देश की आधी आबादी को भय और मजबूरी के हालातों में जीने को विवश करेगी…?

कब तक अमानुषों के मन में उपजी कुत्सित सोच का शिकार बनती रहेंगी महिलाएं …?

 

गत वर्ष की बात है मैं एक पत्रिका पढ़ रही थी, जिसमें वर्ष 2018 में जीतकर लौटी मैरी कॉम ने अपने साथ हुई यौन हिंसा और नस्लीय उत्पीड़न के बारे में अपने बेटों को एक चिट्ठी लिखकर बताया था।

मैरी कॉम की शानदार जीत पर गर्वित होने वाले भारत को, खासकर उसके पुरुषों और युवकों को इसे जरूर पढ़ना और गुनना चाहिए और इससे इससे सीखना चाहिए…।

 

मैरी कॉम लिखती हैं …

मेरे बेटों,

  • तुम अभी नौ और तीन साल के हो, लेकिन इस उम्र में भी हमें अपने आपको महिलाओं के साथ व्यवहार को लेकर जागरूक हो जाना चाहिए।
  • मेरे साथ सबसे पहले मणिपुर में छेड़छाड़ हुई, फिर दिल्ली और हरियाणा के हिसार में। एक दिन मैं सुबह साढ़े 8 बजे साइकिल रिक्शा से ट्रेनिंग कैंप जा रही थीं, तभी एक अजनबी अचानक मेरी तरफ लपका और उसने मेरे स्तन पर हाथ मारा। गुस्से में आकर मैंने उसका पीछा किया लेकिन वो भाग निकला। मुझे उसे न पकड़ पाने का दु:ख है क्योंकि में तब तक कराटे सीख चुकी थीं।
  • एक और ऐसी ही घटना मेरे साथ तब हुई जब मैं 17 वर्ष की थी। में यह सब इसलिए बता रही हूं क्योंकि अपनी शक्तिभर कोशिशों से मैंने अपने देश के लिए बहुत नाम कमाया और पदक विजेता के रूप में पहचान बनाई लेकिन मैं एक महिला के तौर पर भी इज्जत चाहती हूं।
  • बेटों, तुम्हारी तरह मुझे भी दो आंखें और एक नाक है। हमारे शरीर के कुछ हिस्से भिन्न है और यही वो चीज है जो हमलोगों को अलग करती है। हम अपने दिमाग का इस्तेमाल अन्य पुरुषों की तरह सोचने के लिए करते हैं और हम अपने हृदय से महसूस करते हैं जैसा कि तुम करते हो। स्तन छूने और नितंब थपथपाने को मैं पसंद नहीं करती। ऐसा मेरे और मेरे दोस्त के साथ दिल्ली और हरियाणा में ट्रेनिंग कैंप से बाहर टहलने के दौरान हुआ।
  • इससे क्या फर्क पड़ता है कि मैं क्या पहनती हूं और दिन और रात के कब कहां जाती हूं। महिलाओं को बाहर जाने से पहले क्यों सोचना चाहिए? ये दुनिया जितना तुम्हारे लिए है, उतनी ही मेरी भी है। मैं कभी नहीं समझ सकी कि महिलाओं को छूने से पुरुषों को किस तरह का आनंद मिलता है।
  • अब तुम बढ़ रहे हो तो मैं ये बताना चाहती हूं कि छेड़छाड़ और रेप अपराध है और इसका दंड काफी कठोर है। अगर तुम देखते हो कि किसी युवती से छेड़छाड़ हो रही है तो मेरा आग्रह है कि तुम उस युवती की सहायता करो। ये सबसे दु:खद बात है कि हम समाज के प्रति बेपरवाह होते जा रहे हैं। दिल्ली में एक युवती की चाकुओं से गोद-गोदकर हत्या कर दी गई जबकि वहां लोग उसकी मदद कर सकते थे, लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया।
  • तुम ऐसे घर में पले-बढ़े हो जहां हम लोगों ने तुम्हें सम्मान और समानता के बारे में सिखाया है। तुम्हारे पिता 9 बजे से 5 तक नौकरी नहीं करते जैसा कि तुम्हारे दोस्तों के पिता करते हैं। तुम्हारे पिता इसलिए घर पर रहते हैं कि हम दोनों में से किसी एक को तुम लोगों के पास होना जरूरी होता है। ट्रेनिंग और काम के दौरान मैं ज्यादातर वक्त बाहर बिताती हूं। अब जबकि मैं सांसद हूं तब भी ऐसा ही होता है।
  • मेरे मन में तुम्हारे पिता के लिए बहुत सम्मान है जिन्होंने मेरे लिए और तुम्हारे लिए अपना पूरा समय लगा दिया है। तुम लोग जल्द ही ‘हाउस हसबैंड’शब्द सुनोगे जो न तो कलंक है और न ही अपमानजनक। तुम्हारे पिता मेरी ताकत हैं, मेरे पार्टनर हैं, और मेरे हर फैसले का वे समर्थन करते हैं…।
  • खेद की बात है कि पूर्वोत्तर के लोगों को चिंकी कहकर बुलाया जाता है। यह भद्दी और नस्लवादी टिप्पणी है। मेरी तमाम प्रसिद्धि के बावजूद लोग मुझे उस तरह से नहीं पहचानते जिस तरह से वे क्रिकेटरों को पहचानते हैं। कुछ लोग उन्हें चीनी समझ लेते हैं। मुझे राज्यसभा का सांसद होने पर गर्व है और में इस अवसर का लाभ उठाकर यौन अपराधों के प्रति जागरूकता फैलाने की कोशिश करूंगी।
  • इस देश के बच्चों को ये बताना हमारा कर्तव्य है कि महिलाओं के शरीर पर केवल उनका हक है और उनके साथ किसी तरह की जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए। बलात्कार का सेक्स के साथ कोई संबंध नहीं है, ये भी सबको समझना चाहिए। मैं छेड़खानी करने वालों की पिटाई कर सकती हूं, लेकिन सवाल ये है कि ऐसी स्थिति बनती ही क्यों है।
  • बेटों तुम्हें सिर्फ अपने लिए ही नहीं जीना है, तुम्हें शक्तिभर कोशिश करके एक ऐसे समाज का निर्माण करने में योगदान देना है जिसमें लड़कियां सुरक्षित हों और सम्मानित हों।

 

मेरे विचार से यदि हमारे समाज की हर मां अपने बच्चों को मैरी कॉम जैसी सिख दें तो महिलाओं के साथ हो रहे यौन उत्पीड़न, बलात्कार एवं छेड़छाड़ की किस्से आधे से ज्यादा ऐसे ही बंद हो जाए…।

 

ऐसे समय में जब स्त्री की स्मिता खतरे में हैं और कानून व्यवस्था आंखें बंद किए मूक-बधिर बनी हुई है तो आज मुझे पुष्यमित्र उपाध्याय की एक कविता अनायास ही याद आ गई…

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद ना आएंगे,

छोड़ो मेहंदी खड़ग संभालो

खुद ही अपना चीर बचा लो

द्यूत बिछाए बैठे शकुनि,

… मस्तक सब बिक जाएंगे

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आएंगे।

 

कब तक आस लगाओगी तुम, बिक़े हुए अखबारों से,

कैसी रक्षा मांग रही हो दुशासन दरबारों से

स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं

वे क्या लाज बचाएंगे

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे

 

कल तक केवल अंधा राजा, अब गूंगा-बहरा भी है

होंठ सिल दिए हैं जनता के, कानों पर पहरा भी है

तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,

किसको क्या समझाएंगे?

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आएंगे….~~।।

©रीमा मिश्रा, आसनसोल (पश्चिम बंगाल)

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