लेखक की कलम से
मैं जिस दिन …
ग़ज़ल
मैं जिस दिन ख़ूबसूरत सी, कोई दुनिया बसाऊँगा
मुझे मालूम है सर पर, कई ख़तरे उठाऊँगा ।
मुझे आवाज़ दे देकर, बुलाते ही रहोगे तुम
गया तो लौट कर न फिर तुम्हारे पास आऊँगा
यही बेहतर है तट पर ही, मुझे तुम थाम लो वरना
नहीं तो इस समन्दर में, कहीं मैं डूब जाऊँगा
अभी तो हूँ हवा,जिस दिन भी लूँगा शक्ल आँधी की
हैं जितने पेड़ जड़ से खोखले, सब को गिराऊँगा
तुम्हारी आँख भर आये, अकेले बैठ कर जिस दिन
मैं चुपके से वहाँ आकर, ये आँसू पोंछ जाऊँगा
न बेचूँगा किसी भी दाम पर, दीनो – इमां अपना
भले हो सर क़लम हरगिज़ न मैं गरदन झुकाऊँगा
चले हो साथ गर मेरे, न डरना धूप -पानी से
बनेगा जिस तरह मुझ से, मैं ये फ़सलें बचाऊँगा
( सवालों की दुनिया )
©कृष्ण बक्षी