लेखक की कलम से

हवाओं में जहर …

अब तो सांस लेते हुए भी

डर लगता है

हवाओं में घुल गया

जहर लगता है

सबके चेहरों पर नकाब

पहले से लगे हैं

किससे मांगे कोई जवाब

डर लगता है

मैं कि जिंदा हूं अब भी

आके तुम भी देख लो

हो गर न यकीन

तुमको जो लगता है

अपनों के बहुत से

संदेशे आने लगे हैं

ये सच है कि कोई

ख्वाब लगता है

बेटी का स्कूल

3 दिन से बंद है

हम पढ लिख कर भी

रहे गंवार लगता है

इस धुंये के गुबार में

सच दिखने लगा है

मेरा शहर है बीमार

बहुत बीमार

लगता है …

 

 

©संदीप सोनवलकर, मुंबई

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