लेखक की कलम से

नाक कटने का मुहावरा यानि…..

©नीलिमा पांडेय, लखनऊ

‘नाक कटने’ का मुहावरा ख़ूब इस्तेमाल करते हैं हम सब। इसकी जड़ें कहाँ हैं इस बात को अक्सर नज़रंदाज़ कर दिया जाता है। इतिहास पर नज़र डालें तो राइनोटोमी (नासिका विच्छेद) न्यायिक प्रकिया में सज़ा देने का महत्वपूर्ण ज़रिया था।ख़ासतौर पर ये सज़ा sexual transgressions के मामलों में सुनाई जाती थी।

बेबीलोन (इराक़) के शासक हम्मूराबी की विधि संहिता में इसका ज़िक्र मिलता है। प्राचीन मिस्र के कानून में भी ये सजा दर्ज़ है।गौरतलब बात ये है कि नाक काटने की सज़ा परपुरुष गमन और चरित्रहीनता की आरोपी स्त्रियों को बहुतायत से सुनाई जाती थी। हिंदुस्तान की बात करें तो चरक और सुश्रुत की संहिता में इसका (राइनोटोमी और राइनोप्लास्टी)उल्लेख है। जातक और पंचतंत्र में इससे जुड़े किस्से मिलते हैं। ये किस्से समाज की स्त्री संबंधी अवधारणाओं को स्पष्टता से हमारे सामने रखते हैं। इन कथाओं का केंद्रीय भाव स्त्रियों को धूर्त और अन्यागमन में रत दर्शाने वाला है। उनके आवेगों की नियंत्रित करने के लिए हिंसा का प्रयोग कर उनके नाक-कान बतौर सज़ा काट लिए जाते हैं।

कामोन्मत्त स्त्री को नाक-कान काट कर सज़ा देने का सर्वाधिक चर्चित उदहारण हमें रामायण महाकाव्य से मिलता है। रामायण में सूर्पनखा को राम के प्रति यौनाकर्षित दिखाया गया है। उसके यौनाकर्षण को दुःसाहस मानते हुए लक्ष्मण बतौर सज़ा उसके नाक-कान काट उसे विरूप बना देते हैं। नाक का काटना वस्तुतः यौनांग विच्छेद का रूप है। इसका उल्लेख प्राचीन साहित्य में बहुधा मिलता है।

यह लेख पोस्ट सूर्पनखा पर केंद्रित नहीं है। न्यायिक प्रक्रिया में नासिका विच्छेद पर है। समग्रता में पढ़ें।

जातक , पंचतंत्र , हितोपदेश और कथासरित सागर में बहुत सी कथाएं समान हैं। जातक के लिए आप ई. बी. कॉवेल का कलेक्शन देख सकते हैं। पंचतंत्र के ढेरों ट्रांसलेशन मौजूद हैं। अर्थर राइडर को देखा जा सकता है। विलियम क्रुक के फोकलोर कलेक्शन में और सेसिल हेनरी बोम्पास के संथाल फोकलोर में भी कुछ समान कथाएं संकलित हैं। ये सब राइनोटोमी के संदर्भ हैं। जातक और पंचतंत्र की जिन कथाओं का संदर्भ है वह लगभग हर संकलन में मौजूद हैं।

संदर्भ : मित्रभेद,बुक:1/ राइडर,अर्थर;पंचतंत्र, विलको पब्लिशिंग हाउस,मुंबई,2011,पृष्ठ. 61-72; दूसरी कथा ककोलोकिय खण्ड से है , पृष्ठ. 372-73; जातक संदर्भ: 1.155

इन तीनों कथाओं से मिलती जुलती कथा संथाल परगना फोक लोर में भी है जिसका उल्लेख ऊपर है। सुश्रुत संहिता भी बतौर सजा नाक काटने का महत्वपूर्ण प्रमाण प्रस्तुत करती है।

 

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