लेखक की कलम से

ढलती आस……

ढलती उम्र  सब कुछ पीछे छोड़ती गई
बचपन छूटा ,जवानी की मस्ती छूटी
जिम्मेदारी की कड़कती धूप मे मुस्कुराहट  छूटी
जीवन की भागदौड़  मे सुकून  छूटा
नवकलियो सा खिलता जीवन छूटा
झुर्रीदार  शाम चेहरे की सिलबटो पर न छूटी
उम्र का तजुर्बा न छूटा , आखिरी पढ़ाव
जो छूटा •••••••••••
उलझनो भरी जिंदगी  के मसले हल न होगे।
ढेरो मंजर हसीन लम्हो को देखना मुनासिब  नही
मौत के मुकम्मल आगोश  मे सुकून  से  आँखे मूँदे
हम मिलेगे।
जिंदगी  तुझे समझ न सके ताउम्र
गर्म थपेड़े सहते रहे।
मौत हकीकत मे  जन्नत का ख्वाब दिखाने आ गई।।
उम्मीद  तेरे दीदार की न छूटी।
आस आखिरी एक झलक की न छूटी
दिल के अरमान •••••••सुख
मंशा सारी छूट गई।

©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा

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