मैं हूँ नारी …
मैं हूँ नारी !
नहीं डरती तुम्हारी तरह
आने वाली किसी भी मुसीबत से
जानती हूँ –
प्रेम दंडनीय है ….
आज भी धरा पर ।
मगर नहीं कर सकती
तुम्हारी तरह पलायन ….
इतिहास गवाह है !
अहिल्या ,
तारा ,
मंदोदरी ,
कुंती और द्रोपदी ने
पंच सतियों में दर्ज़ करवाया
है अपना नाम …
क्यूंकि तमाम झंझावातों के बावज़ूद भी
वो थी पावन , निर्मल , निश्छल …
और अपने
संपूर्ण व्यक्तितव में उज्जवल
हाँ …मुझ में मौजूद हैं ,
उनके ही बिम्ब
साँसे लेती हैं –
उन जैसी ही संवेदनाएँ मुझमें भी
तभी तो प्रतिकार करती आई हूँ –
सदियों से अपनी ही कमज़ोरियों का
नहीं , तुम्हारी तरह मैं !
लज्जित नहीं हूँ –
कुंठित भी नहीं …
प्रेम बंधन के चरम पराकाष्ठा का
रसास्वादन मैंने किया है निरंतर …
दूषित नहीं कर सकती
तुम्हारी तरह भावनाओं को …
हर बार , हर जनम में तुम
मिलते रहोगे यूँ ही मुझसे !
मिटाते रहोगे
अपनी भूख , अपनी प्यास
और फिर मुँह बाएं किए
निकल पड़ोगे किसी ओर …
क्यूंकि
अपनी तमाम ज़रूरतों का
नहीं कर सकते तुम !
संसार के समक्ष तनिक भी ख़ुलासा
क़ायर जो हो ….
मगर मैं जन्म से ही जुड़ी हुई हूँ
वसुंधरा से …
भाग जाना फ़ितरत ही नहीं …
प्रकृति हूँ ना ….!!
यूँ ही सूखती रहूँगी पतझड़ में
और फिर निश्चित ही
मुस्कुरा उठूँगी बसंत के आते ही …
क्यूंकि सृजन मेरी पहचान है …
हिम-वृष्टि या तूफान के आने से
निःसर्ग !!
अपना मूल स्वभाव
नहीं बदलते ……..
©अनु चक्रवर्ती, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
परिचय- अनु चक्रवर्ती, रंगकर्मी, कवयित्री, दो हिंदी फ़ीचर फ़िल्म और एक स्थानीय छत्तीसगढ़ी फ़ीचर की अभिनेत्री, आकाशवाणी में उद्घोषिका, मंच संचालन में सिद्धहस्त, साहित्य एवं कला मर्मज्ञ, समाज सेविका।