लेखक की कलम से

लक्ष्य प्राप्त कीजिए मगर अहित न हो…

गुरु और विद्या कर्ण और अर्जुन से:-

     धनुर्विद्या तो अर्जुन ने द्रोणाचार्य से सीखी थी, लेकिन उनका उद्देश्य अपने सगे संबंधियों को मारना नहीं था, बल्कि क्षत्रिय धर्म को जीवित रखकर राज्य और प्रजा की रक्षा करना था।                           और………..

     धनुर्विद्या तो कर्ण ने भी द्रोणाचार्य के गुरु से सीखी थी, लेकिन उनका उद्देश्य सिर्फ अपने अपमान का बदला लेना, अर्जुन को नीचा दिखाना, और धर्म के विपरीत लड़ना ही था। फिर परिणाम तो आपको मालूम ही है।

                 :—यहां कर्ण सीखा गये—:

     ये सोचना जरूरी है कि, हम जीवन में जो भी कार्य कर रहे हैं, उसका उद्देश्य क्या है। क्योंकि कर्म के उद्देश्य पर ही परिणाम निर्भर करता है।

     “हम जिम जा रहे हैं तो हमारा उद्देश्य, अपनेआप को स्वस्थ, सुरक्षित रखना है, या दूसरे को असुरक्षित रखना”

     “हम पैसा कमा रहे हैं तो हमारा उद्देश्य, अपनेआप को ऊंचाइयों पर ले जाना, या दूसरे को ऊंचाइयों से धक्का देना”

     “हम शिक्षा ले रहे हैं तो हमारा उद्देश्य, अपनेआप को प्रतिष्ठित करना, या प्रतिष्ठित लोगों को गिराना”

     प्रतिशोध लेने, अपमानित करने की भावना से किया गया कार्य कभी सफल नही होता है।

     “अगर हम अपनी योग्यता को गलत कार्य में लगा रहे हैं, तो उसी योग्यता के नीचे दबाकर मार दिये जायेंगे”

©संकलन – संदीप चोपड़े, सहायक संचालक विधि प्रकोष्ठ, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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