लेखक की कलम से
पहचान…
हर एक चेहरे की
अपनी एक पहचान होती है।
भीड़ में कहीं
कोई एक चेहरा
उसकी हंसी कहीं
अंदर जाकर क़ैद हो जाती है।
और
फिर हम
उस एक चेहरे को
उस हंसी को
भीड़ में, हर जगह
हर एक चेहरे में
ढूंढ़ते रह जाते हैं!
©डॉ. विभा सिंह, दिल्ली