लेखक की कलम से

हिन्दी हमारी पहचान …

हम हैं शिक्षक, प्रतिमूर्ति अनुशासन की।

देते बच्चों को निराली सीख जीवन की।

सदैव करते हैं प्रेरित, सूत्रधार नए युग के बनने को।

नौसिखिये परिंदों को हम बाज बनाते हैं।

चुपचाप सुनते हैं शिकायतें सबकी,

तब दुनिया बदलने का शंखनाद करते हैं।

समंदर तो परखता है, हौसले कश्तियों के

और हम डूबती कश्तियों को जहाज बनाते हैं।

पर

क्यों खुद ही भटक जाते, अपनी ही दिखाई राह से!!

क्यों कर जाते अपनी कथनी-करनी में अंतर???

पद अपने की, गरिमा की खातिर, शिक्षक से पहले शिक्षार्थी बनना होगा।

नियम-कायदे सीखाने से पहले, खुद उन पर चलना होगा।

हम से है भविष्य देश का, या यूं कहें, हम ही हैं मुस्तकबिल मुल्क का।

आओ मिलकर करें एक नारा बुलंद।

कि

हिंदी है हम, हिंदी ही हमारी पहचान है।

हम किसी से कम नहीं,

क्योंकि हिंदी से हमारी प्रतिष्ठा व सम्मान है।

©डॉ नीलू शर्मा, कार्डिनेटर हिन्दी, भवन्ज़ एस.एल. पब्लिक स्कूल, अमृतसर, पंजाब

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