लेखक की कलम से

पिता की बेटी …

 (लघुकथा)

पिता ने सौ रुपए की सम्पत्ति में से पाँच पैसे की सम्पत्ति अपनी बेटी को देने की बात कही । बेटे को बहुत बुरा लगा ।वह पिता से इस विषय में कुछ नहीं कह पाया परंतु उसने स्पष्ट शब्दों में बहन से कहा -“ पिता तुम्हें जो सम्पत्ति देने की बात कह रहे हैं ।वह बिल्कुल ग़लत है ।पूरी संपत्ति पर मेरा हक़ है । “

उसने बहन से प्रश्न किया -“ क्या हमारी बुआ को पहले संपत्ति में से कुछ दिया गया ?तो पिता अब तुम्हें देने की बात क्यों कर रहे हैं ?”

बहन चुप रही ।जिस भाई से वह इतना प्यार करती थी ।उसके मुँह से ऐसी बात सुन कर ।वह भीतर से कही टूट गई थी ।

भाई ने फिर पूछा -“क्या मेरी पत्नी मायके से कुछ ले कर आई है जो पिता तुम्हें देने की बात कर रहे हैं?”

बहन अभी-भी चुप थी ।कमरे में प्रवेश करते हुए मामा ने सवाल किया – “बेटा तुम्हारी भी दो बेटियाँ हैं ।क्या तुम उन्हें कुछ नहीं दोगे ?”

बहन धीरे से बोली -“ अपनी बेटी और पिता की बेटी में फ़र्क़ होता है मामा जी ।”

©डॉ. दलजीत कौर, चंडीगढ़                

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