लेखक की कलम से
चाय …
होटों को छुआ और तन में घुली,
सुबह की ताजगी तुम देके गयी,
मन हर्षित हुआ रुप पुलकित हुआ,
चाय तुम मेरी चाहत बन गयी।
तुम मेरी खुशि और गम मे शामिल,
तुम मेरी जिन्दगी में घुल गयी,
हो तीज-त्योहार या रूठना-मनाना,
चाय तुम यारों की महफिल बन गयी।
हम सभी ने इसकी ताकत जानी,
आसाम,दार्जीलिंग की शान बन गयी,
तम्हें पीके लोग क्या क्या बन गये,
चाय तुम देश की ताकत बन गयी।
©झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड