लेखक की कलम से

चरण छूना अर्थात यश पाना है …

मियां मोहम्मद नवाज शरीफ की नब्बे—वर्षीया माता बेगम शमीम अख्तर के गत दिनों लंदन में हुये इंतकाल पर नरेन्द्र मोदी ने शोक व्यक्त किया।अपना संदेश दूतावास द्वारा बेटी बेगम मरियम शरीफ को लाहौर में दिया। मरियम आजकल इमरान खान की सरकार को उखाड़ने वाले जनसंघर्ष का नेतृत्व कर रहीं हैं। बेगम शमीम का वात्सल्यभरा आशीष मोदी को मिला था। तब (2015) अफगानी संसद के नवनिर्मित भवन का उद्घाटन कर काबुल से दिल्ली लौटते समय मोदी अचानक लाहौर उतरे थे। उस दिन (25 दिसम्बर) नवाज शरीफ का 66वां जन्मदिवस था। अटलजी की भांति। उनकी नातिन का निकाह भी उसी दिन था। मोदी दोनों उत्सवों में शरीक हुये। वाकया अप्रत्याशित था। तभी वालिदा शमीम के चरण भी मोदी ने छुये थे। दुआयें पायीं थीं। इधर दिल्ली में सोनिया—कांग्रेस के लोगों ने मोदी का पुतला जलाया क्योंकि उनकी नजर में मोदी ने भारत का सम्मान घटाया था। हालांकि बुजुर्गों का चरण स्पर्श करने से मनु स्मृति (द्वितीय अध्याय:, श्लोक : 121) के अनुसार आयु, विद्या, यश और बल बढ़ता है।

मानस की पंक्ति है : ”प्रातकाल उठि के रघुनाथा। मातु पिता गुरु नववहीं माथा।।”

उदाहरणार्थ बालक मार्कण्डेय की अल्पायु थी पर सप्तर्षि और ब्रह्मा के चरण छूने पर उसे दीर्घायु का आशीर्वाद मिला। शीघ्र—मृत्यु का दोष भी मिट गया।

अमूमन इस्लाम में केवल अल्लाह के सामने ही सर नवाते हैं। मगर हर सुलतान, बादशाह और नवाब के समक्ष अकीदतमंद सिजदा करते रहे। कई हिन्दुजन भी बहुधा चरण स्पर्श को असंगत समझते है। हिचकते हैं। एकदा नजरबाग (लखनऊ) में हमारे पड़ोसी पंडित उमाशंकर दीक्षित ने मुझे सिखाया था, बड़ों के पैर छूने से भला होता है, भाग्य सुधरता है। (दीक्षित जी इन्दिरा गांधी कबीना के गृहमंत्री और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रह चुके थे। उनकी बहू शीला कपूर—दीक्षित दिल्ली की 15 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहीं। उनके पुत्र संदीप सांसद थे। पुत्री का नाम है लतिका सैय्यद।)

मोदी से सोलह वर्ष पूर्व अटल बिहारी वाजपेयी कलकता की एक सरकारी यात्रा के दौरान अपनी रेल मंत्री कुमारी ममता बनर्जी के कालीघाट वाले आवास पर गये थे। वहां 75—वर्षीय वाजपेयी ने अपने से पांच साल छोटी गायत्री बनर्जी के चरण स्पर्श किये। ममता की इस मां ने नारियल के लड्डू प्रधानमंत्री को खिलाया और स्वस्ति वचन कहे। हालांकि कुछ ही माह बाद ममता ने अटलजी से कन्नी काट ली। उनकी राजग कबीना से त्यागपत्र देकर राजनीतिक संकट सर्जाया था।

अवहेलना करने पर हानि होने का भी दृष्टांत है। प्रयाग में कुंभ था। देवराहा बाबा पेड़ पर मचान लगाये विराजे थे। उत्तर प्रदेश के कांग्रेसी मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र दर्शन हेतु पधारें। मैं भी श्रद्धालुओं में था। बाबा ने मिश्रजी को ग्यारह किलो मखाने की गठरी दी। सर पर संभाले, खड़े रहने का आदेश दिया। तीस मिनट की काल—अवधि थी। कुछ ही देर बाद श्रीपति मिश्र ने गठरी उतार दी। बाबा बोले, ”ग्यारह किलो मखाने चन्द मिनटों तक सर पर नहीं रख पाये, तो उत्तर प्रदेश के ग्यारह करोड़ (तब की आबादी) का भार कैसे संभाल पाओगे?” बस 2 अगस्त 1982 को वे हटाये गये। पंडित नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री नामित हो गये।

यहां अब चन्द मेरे निजी प्रसंग भी। तब पांच वर्ष की आयु थी। सेवाग्राम (वार्धा) में महात्मा गांधी के आश्रम में पिताजी (स्व. संपादक के. रामा राव) हम सबको ले गये थे। लखनऊ जेल से 1943 में रिहा हो कर पिताजी सपरिवार (जमनालाल) बजाजवाडी में रहे थे। प्रात: टहलते समय बापू के चरणों के हम भाई— बहनों ने चरण स्पर्श किये। अहोभाग्य था। देवस्वरुप के दर्शन हुये। एक बार राज्यसभा कार्यालय में सांसद—पिता ने अध्यक्ष (उपराष्ट्रपति) डा. सर्वेपल्ली राधाकृष्णन से भेंट करायी। ऋषि—विचारक के स्वत: चरण स्पर्श करने की मेरी अभिलाषा भी पूरी हुयी।

मगर सबसे आह्लादकारी अनुभव था सोशलिस्ट सांसद लार्ड फेनर ब्राकवे के साथ का। कोलकत्ता में जन्मे (1 नवम्बर 1888) इस महान विचारक, समतावादी, गांधीवादी, युद्धविरोधी जननायक ब्राकवे से भेंट करने मैं सपरिवार उनके लंदन आवास पर गया। इस 96—वर्षीय राजनेता का किस्सा याद आया। गुंटूर के ब्रिटिश कलक्टर ने तिरंगा फहराना और गांधी टोपी पहनने को अवैध करार दिया था। इस पर लार्ड ब्राकवे गांधी टोपी पहनकर ब्रिटिश संसद में गये। वहां हंगामा मचा। ब्रिटेन के प्रथम समाजवादी प्रधानमंत्री रेम्से मेकडोनल्ड ने सदन में माफी मांगी। राजाज्ञा तत्काल निरस्त हुयी। तो ऐसे महान भारतमित्र के चरणों का मैंने,पत्नी (डा. के.सुधा राव), पुत्र सुदेव और पुत्री विनीता ने स्पर्श किये। गोरे शासक वर्ण के इस अद्वितीय गांधीवादी के स्पर्श मात्र से नैसर्गिक अनुभूति हुयी। कुछ ऐसी ही बात रही हवाना (क्यूबा) में विश्व श्रमजीवी पत्रकार अधिवेशन में राष्ट्राध्यक्ष डा. फिदेल कास्त्रो के पैर छूने पर। कास्त्रो और उनके साथी शहीद शी गुवेरा ने हमारी पूरी पीढ़ी को अनुप्राणित किया था। लाल चौक (मास्को) में मजदूर मसीहा व्लादीमीर लेनिन के रसायन द्वारा सुरक्षित रखे गये शव पर माथा नवाकर भी मुझे लगा इतिहास से साक्षात्कार हो रहा है।

इन संस्मरणों की मेरी पृष्ठभूमि का आधार भी रहा। जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद 1919 में अमृतसर नगर में राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रतिनिधि अधिवेशन हुआ था। मोतीलाल नेहरु ने अध्यक्षता की। वहां गांधीजी के साथ लोकमान्य बालगंगाधर तिलक का अंतिम दर्शन प्रतिनिधियों को हुआ। तभी कराची के राष्ट्रवादी दैनिक ”दि सिंध आब्जर्वर” को छोड़कर, सर सी.वाई. चिंतामणि के संपादकत्व वाले दैनिक ”दि लीडर” में नियुक्ति पाकर, मेरे निरीश्वरवादी पिता प्रयागराज के रास्ते अमृतसर सम्मेलन में आये थे। अपनी आत्मकथा ” दि पेन एज माई स्वोर्ड” में उन्होंने जिक्र किया कि ”जलियांवालाबाग नरसंहार की तीव्रतम भर्त्सना तिलक ने की। मैंने उस संत के चरण छुये जो साक्षात त्रिमूर्ति के भी मैं कदापि न करता।” तो विरासत में यही पैतृक परिपाटी मुझे मिली है। यही मेरी पृष्टभूमि है।

 

©के. विक्रम राव, नई दिल्ली

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