कैसे गाऊं चूड़ी कंगन …
कैसे गाऊं चूड़ी कंगन जब देश पड़ा हो संकट में ।
कैसे गाऊं रोली चंदन जब देश घिरा हो संकट में ।।
एक तरफ ड्रेगन फुफकारे एक तरफ वो नापाक है।
अब तो आंख दिखा कर गुर्रा रहा नेपाल है ।।
वायस का वो कर्णवेध सोर मचाये चारों ओर ।
सृगाल का वो लप लप जिह्वा मांग रहा है कुछ और ।।
अपनों का वह पीछे से वार दुश्मन आवाज बन बोल रहा।
किस किस का इलाज करें भारत अंदर से रो रहा ।।
करोना का यह विकट मार जन जन में है घुसा पड़ा।
अस्पताल से शमशान भूमि तक शव ही शव है बिछा पड़ा ।।
अखण्ड भारत की आशा पर एक एक कार पानी फिर रहा ।
ड्रीम प्रोजेक्ट सहित स्मार्ट का अब नारा बनकर रह गया।।
इतने पर भी सन्तोष नहीं है चलते रहते उल्टे चाल ।
कभी उसमें खुद फंसते हैं तो कभी फंसाते अपनों को आप ।।
प्रश्न उठाकर जब करते हैं भारत के लालों पर वार ।
खाकी की मर्यादा घटती है जब भी प्रश्न उठाते आप ।।
इस मिट्टी पर तुम हो जन्मे भूमि की रक्षा का हो भार ।
दुश्मन संग मिलकर तुम कैसे करवा सकते अपनों पर घात।।
भारत माता कोस रही है क्यों जना तुम सा कपूत ।
अपनी मिट्टी का ना होकर क्यों बिक रहा मेरा कपूत।।
जब देश में होगी खुशाली जब चारों तरफ होगा अमन और चैन ।
भारत के हर वीर सपूत के हाथों में होगा तब मृदंगा।।
फिर लहार खुसी की फैलेगी तब गाएंगे मिलकर मल्हार ।
चूड़ी कंगन और रोली चंदन की तब ही कर लेंगे बात।।
©कमलेश झा, शिवदुर्गा विहार फरीदाबाद