लेखक की कलम से

कहां है शेष …

जगह कहाँ है शेष?

इंतजार करूं जरा,

उत्तर मिलेगा क्या?

 

सर,आंखों या दिल में,

या फिर घर-आंगन में,

या कमरे के किसी कोने में,

या रसोईघर की शोर में,

ऑफिस-दफ्तर की होड़ में,

या फिर मनी पाउच में,

मेरे लिए जगह कहां है शेष?

 

जीवन के प्रतिपलों में,

या फिर विशेष पलों में,

अकेलेपन में,तंगी में,

संघर्षों में,सिहरन में,

या प्रतिधड़कनों में,

जगह कहां है शेष?

 

घर के समस्त रिश्तो में,

सबकी आकांक्षाओं में,

भीषण महत्त्वाकांक्षाओं में,

दिल की तंग गलियों में,

जगह कहां है शेष?

जरूरतों में,

सिर्फ और सिर्फ जरूरतों में…..

 

अब मैं खुद में भी जगह

नहीं खोज पाती खुद के लिए!

जिम्मेदार कौन

मेरी इस स्थिति के लिए……?

 

©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता                            

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