नियति …
कहानी
कैलाश पर्वत पर शिव पार्वती से : क्या बात है पार्वती इतनी गंभीर मुद्रा में क्यों बैठी हो ? देखो तो पृथ्वी पर नवरात्रि के दिनों में हर घर में तुम्हारे आगमन पर तुम्हारे नाम की ज्योति जली है, हर व्यक्ति तुम्हारा इंतजार कर रहा है कि कब तुम आओगी और उन पर अपनी कृपा बरसाओगी।
पार्वती शिव से : आप तो त्रिकालदर्शी हैं और सब जानते हैं स्वामी। मैं बहुत चिंतित हूं कि अपनी परम भक्त नंदिनी की किस तरह सहायता करूं। मैं चाह कर भी इसकी कुछ मदद नहीं कर पा रही हूं।
शिव : ये तुम कह रही हो पार्वती….
पार्वती : आपको क्या लगता है स्वामी मैंने उसकी सहायता नहीं करनी चाही होगी। आप तो जानते ही हैं कि मानव कितना हठी, कितना स्वार्थी हो गया है, मैंने तो ठीक दस वर्ष पहले ही इस समस्या का समाधान कर दिया था, लेकिन नंदिनी के पति नलिन की हठ और जिद ने सब कुछ खत्म कर दिया। चलिए आपको दिखाती हूं…
दस बरस पहले: नंदनी अपने पति से मैं इस बच्चे को जन्म देना चाहती हूं, दूसरी बेटी है तो क्या, है तो हमारा अंश ही। और देखो ना अक्षरा को भी एक एक छोटी बहन मिल जाएगी। आप खर्चे की फिक्र ना करो, मैं भी नौकरी कर लूंगी। कितने ही गरीब लोग हैं जो कई कई बेटियों को यूं ही पाल लेते हैं, फिर हम तो पढ़ें लिखे हैं, सक्षम हैं, और एक तरफ तो आप कन्या पूजन करते हैं दूसरी तरफ ….आप मानिए मेरी बात, हर बेटी अपना नसीब लेकर आती है और कुछ काम नियति पर छोड़ देने चाहिए, आप मुझे मजबूर ना करें ..
नलिन नन्दनि से : तुम ठीक कह रही हो, गरीब लोग तो पाल ही लेते हैं, उन्हें कोई दिखावा नहीं होता, मैं अपने बच्चों को सारी सुविधा देना चाहता हूं और मैं दो दो बेटियों को वो सब नहीं दे सकता, सिर्फ अक्षरा ही काफी है। मैं दो दो बेटियों की परवरिश अच्छे से नहीं कर सकता। फिर मैं घर का इकलौता बेटा हूं, मां बाबूजी भी चाहते हैं कि उनका वंश आगे बढ़े, भगवान ने चाहा तो अगली बार बेटा ही होगा। और जब विज्ञान ने जब इतनी तरक्की कर ली है कि हम मन चाहा पा सके तो फिर क्यूं नहीं… इसमें क्या बुराई है, हमें सिर्फ उस औलाद को ही जन्म देना चाहिए जिसे हम प्यार दे सकें, अच्छी परवरिश दे सकें।
बुराई है नलिन, नियति के साथ खिलवाड़ अच्छा नहीं फिर बेटा हो या बेटी दोनों ही समान है…
लेकिन नंदनि की एक ना चली और वो मासूम दुनिया में आये बिना ही चली गई।
दस बरस बाद :आज फिर नवरात्रि हैं
नंदनी अपने पति से: अब कहां गया आपका विज्ञान तकनीक कहां से लाओगे (Bone marrow बोन मैरो) मेरी बेटी अक्षरा के लिए जो सिर्फ एक उसका अपना भाई या बहन ही उसे दे सकता था। आज मेरी छोटी बेटी इस दुनिया में होती तो मेरी दोनों बेटियां खुशियां बिखेर रही होती हमारी जिंदगी। ईश्वर ने हमें बहुत कुछ दिया, लेकिन हम उसे संभाल न सके, संभाल न सके नलिन ….कहते-कहते नंदिनी बेहोश होकर गिर जाती है।
उधर शिव पार्वती से : क्या तुम अब अपनी भक्त के लिए कुछ नहीं कर सकती।
पार्वती शिव से : मां तो मां होती है, पुत्र चाहे कुपुत्र हो जाए, लेकिन मां कभी कुमाता नहीं हो सकती। आप अब देखना….
नलिन नंदनी को लेकर अस्पताल भागता है डॉक्टर नलिन से:
ये चमत्कार है मेडिकल साइंस के हिसाब से नंदिनी मां नहीं बन सकती थी, लेकिन लगता है भगवान ने आपकी बेटी अक्षरा को बचाने के लिए ही चमत्कार किया है जो नंदनी मां बनने वाली है।
शिव पार्वती से: धन्य हो तुम,, और धन्य है तुम्हारी ममता।
पार्वती शिव से: मैंने तो दस बरस पूर्व ही इसका समाधान कर दिया था प्रभु, बस इंसान की हठ की वजह से इतना समय लग गया।
प्रेम से बोलो जय पार्वती माता की …
©ऋतु गुप्ता, खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश