लेखक की कलम से

अद्भुत लेखिका कृष्णा सोबती …

आज के दिन जन्मी अद्भुत और साहसी लेखिकाओं में कृष्णा सोबती का नाम साहित्य के पन्नों पर सवर्ण अक्षरों सा चमक रहा है। लेखनी पर गजब की पकड़ और मुखरित विचारों का समन्वय। अपनी रचनाओं के माध्यम से कृष्णा सोबती ने नारी के उपर होने वाले विभिन्न अत्याचारों को उजागर किया और स्त्रियों के साथ घट रही सामजिक अश्लीलता का बखूबी वर्णन किया।

हिंदी की जानी मानी साहित्यकार कृष्णा सोबती का जन्म गुजरात में 18 फरवरी 1925 को हुआ था। भारत के विभाजन के बाद गुजरात का वह हिस्सा पाकिस्तान में चला गया। विभाजन के बाद वे दिल्ली में आकर बस गयीं और तब से यहीं रहकर साहित्य-सेवा कर रही हैं। उन्हें ‘ज़िन्दगीनामा’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। उन्हें साहित्य अकादमी का फेलो बनाया गया जो अकादमी का सर्वोच्च सम्मान है। इन्हें भारतीय साहित्य के सर्वोच्च सम्मान “ज्ञानपीठ पुरस्कार” से सम्मानित किया गया है। ये मुख्यतः कहानी लेखिका हैं। इनकी कहानियाँ ‘बादलों के घेरे’ नामक संग्रह में संकलित हैं। इन कहानियों के अतिरिक्त इन्होंने आख्यायिका की एक विशिष्ट शैली के रूप में विशेष प्रकार की लंबी कहानियों का सृजन किया। ऐ लड़की, डार से बिछुड़ी, यारों के यार, तिन पहाड़ जैसी कथाकृतियाँ अपने इस विशिष्ट आकार प्रकार के कारण उपन्यास के रूप में प्रकाशित भी हैं। इनका निधन 25 जनवरी 2019 को एक लम्बी बिमारी के बाद हुआ और साहित्य जगत के आसमान से एक झिलमिलाता सितारा टूट कर गिर गया।

साहित्य-संस्कृति के इतिहास में उन्होंने अपने नाम बहुत कुछ दर्ज किया है। सोबती हिंदी की प्रमुख गद्य लेखिका थीं। उनके लिखे अल्फाज मानो जिंदगी के अंधेरे में रोशनी बिखेरने का काम करते हैं।

कृष्णा सोबती के स्त्री पात्र अपने आप में एक पहेली हैं। उनके विचारों में स्त्री के हर रूप की झलक है। समर्पिता, आज्ञाकारी, गर्वीली, प्रेम-निमग्न, गृहस्थी में खटती लेकिन संतुष्ट स्त्रियाँ, स्वामिनी, सेविका, रखैल आदि। कृष्णा की स्त्री  पात्रों की ख़ासियत यह है कि वे सब अपनी ज़िंदगी, अपनी शर्तों पर जीती हैं।

इनकी कहानियों को लेकर काफ़ी विवाद हुआ। विवाद का कारण इनकी मांसलता है। स्त्री होकर ऐसा साहसी लेखन करना सभी लेखिकाओं के लिए सम्भव नहीं है।  उनके ‘ज़िन्दगीनामा’ जैसे उपन्यास और ‘मित्रो मरजानी’ जैसे कहानी संग्रहों में मांसलता को भारी उभार दिया गया है। बात यह है कि दिखने में सामान्य कृष्णा सोबती की जीवनगत यौनकुंठा उनके पात्रों पर छाई रहती है।

असंख्य सम्मान से सम्मानित सोबती के कुछ प्रमुख सम्मान साहित्य अकादमी पुरस्कार, शिरोमणी पुरस्कार, हिन्दी अकादमी पुरस्कार, शलाका पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार।

और मुख्य कृतियाँ,

उपन्यास :  डार से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, यारों के यार तिन पहाड़, सूरजमुखी अंधेरे के, सोबती एक सोहबत, जिंदगीनामा, ऐ लड़की, समय सरगम, जैनी मेहरबान सिंह

कहानी संग्रह : बादलों के घेरे

एक से बढ़कर एक कृतियाँ साहित्य जगत में पेश करने वाली कृष्णा सोबती जिन्होंने एक अच्छी व्यवस्था में परवरिश पाई, हवेली जैसे घरों में रहीं, हमेशा नौकर-चाकर वाले घरों में पलीं, उन्होंने अपने अनुभवों से समाज की स्त्रियों में जैसी सुगबुगाहट देखी-सुनी उसे ही अपने उपन्यासों कहानियों में व्यक्त किया। उनका ध्येय अपने वक्त की सती-साबित्री जैसी स्त्रियों को फोकस करना नहीं था। वे तो कल्याण पत्रिका या गीता प्रेस की पुस्तकों के लिए ही बनी थीं। स्त्री  सुबोधिनी मंत्र का पाठ करने वाली स्त्रियां सोबती की स्त्रियां नहीं। दूसरी बात यह कि सोबती का संसार पुरुष पात्रों का संसार है ही नहीं। वह स्त्री पात्रों का ही संसार है। वे जानती थीं कि पुरुष पात्रों से अब समाज के परिवर्तन की आहट नहीं मिलने वाली। यदि कल के समाज को देखना हो तो आज की स्त्रियों को देखो। कृष्णा सोबती जैसे लेखक सदियों बाद पैदा होते है जो हर पाठकों के मन में अमिट छाप छोड़ जाते है।

©भावना जे. ठाकर                   

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