लेखक की कलम से

नव अंकुर …

“एक नव अंकुर जब उगता है,

सबसे पहले वो गलता है,

गलता है देखो सड़ता है,

फिर धीरे-धीरे बढ़ता है,

एक नव अंकुर जब उगता है,

आंधी सहता तुफां सहता,

गर्मी में भी वो है तपता,

कभी लड़ता, मरता, गिरता है,

कभी झुकता और संभलता है,

एक नव अंकुर जब उगता है,

बढ़ता है बढ़ता जाता है,

अपने यौवन को पाता है,

खुद को फूलों से महका कर,

फिर से अंकुर हो जाता है,

एक नव अंकुर जब उगता है”…

©तेजिन्द्र दत्त फुलारा

परिचय- एम. काम, अपर श्रेणी लिपिक, रक्षा मंत्रालय, बीकानेर, राजस्थान

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