लेखक की कलम से

टूटी चप्पल …

 

देख तो दिन में पीकर चलते टेढ़ी चाल

दाएँ बायें झुक कर लहराई  नागिन चाल

 

एक पैर घिसटता दूसरा लम्बा उठाए

नैनो को मेरे लगे  नशीली चाल

 

एक कंधा उचका  दूसरा गिर जाए

ना जाने किस पल गिरे ऐसी है चाल

 

बग़ल में मोड़कर रखा  लपेट कर

दूर से देखे समझे न कैसी करामाती चाल

 

हाथ में था कुछ उसके कान में लगा हुआ

समझ आया जब पास मोब टूटा उसके हाथ

 

आ रही आवाज़ बड़े ध्यान से सुनता था

न्यूज़ सुनकर चल रहा वैसी ही चाल

 

कैसा विरोधाभास  पीकर भी सुन रहा

एक जागरूकता दूजा झूमती मतवाली चाल

 

आया जब नज़दीक तो हुआ मुझको भान

टूटी चप्पल ने की ऐसी बेढंगी चाल

 

कैसी मेरी मति यह समझ ना पाए ग़रीबी

थोप दी इन आँखो की गलती उसकी चाल

 

नज़र ऐसी है बला जाने क्या ले देख

उल्टे ही कर दे मस्तिष्क की  चाल

 

©सवि शर्मा, देहरादून                                                        

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