लेखक की कलम से

संताप …

गुनाह किये बहुत गुनाहगार हो गये।

आईने मे देखा जब

दर्द के हकदार हो गए।

सबको खुश रखने के लिए , दिल मे रख रहे थे ।

दर्द से भरे पलो को चाशनी की मरहम से संजो रहे थे।

समझा दिया एक पल मे

अरे! अहसास के रिश्तो का नाम नही होता।

बेनाम रिश्तो के जनाजे को कोई कांधा नही देता।

टूटे हुए चुभने पलो को देख

अपनी वफाओ को निभाते हुए

अपने ही दिल को दुखाने का गुनाह करते करते।

आईने मे प्रतिबिंब न दिखा।

तुम मुझसे समा चुके हो ।

इस तरह …….

बेपनाह प्यार करने का गुनाह देखा।

टूटे अरमान,बिखरते पल,रिसते अहसास देखे।

तेरे आगोश के सुकून लम्हात देखे।

हर बार मेरी गलतियो का फरमान था।

तुझ से वफा मिले।

मेरा सबसे बडा अरमान था।

शायद दिल के दर्द का मीठा सा सामान था।

आँखो से दर्द मोती बन छलकने लगा।

आईना मुझे गुनाहगार समझने लगा।।

 

©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा                        

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