लेखक की कलम से

कल होली है …

रंग बिरंगी होली

मेरा भी बहुत मन था

होली पर घर आता

सब को  प्रेम और होली रंग लगाता

और स्वयं को तुम्हारे रंगों में रंग जाता

 

पर मैं तो

पहले ही खेल चुका हूँ

होली अपने लहू से

कितने ही दोस्तों संग ,बीच सड़क पर

मैं उसमें रंग कर भूल गया रिश्ते ,घर

कल जब तुम होलिका दहन करना

तो उसकी प्रज्वलित अग्नि में स्पर्श करना

मेरे इस नश्वर शरीर को

उड़ाकर थोड़ा सा गुलाल मेरे नाम का

एहसास करना मेरा भी स्पर्श

और रंग लेना मेरे रंग में खुद को

दो चुटकी गुलाल माँ के कदमों से लगा देना

नमन कर मेरी यादों से उसे जगा देना

और आभास कर लेना मेरे वजूद को

हम खेलेंगे होली अपने अपने रंग से

अपने अपने ढंग से

भले ही मैं हूँ या ना हूँ एक -दूजे को रंगने को

पर खेलेंगे हम होली जी भर कर

तुम अपनों संग और हम सरहद पर ..।

 

सैनिक के मनोभाव ….जय हिन्द???

 

©अनुपम अहलावत, सेक्टर-48 नोएडा

Back to top button