लेखक की कलम से
तमन्ना- ख्वाहिश, इच्छा …
दिली तमन्ना होती है पूरी
कभी अधूरी भी रह जाती है
शिद्दत से चाहो तो कहते हैं
ख्वाहिश पूरी हो जाती है
अधूरी,पूरी तमन्ना पेचीदा
मेल है
इसे आजमाना क़िस्मत का
खेल है
बेमेल ख्वाहिश के रूपों को
जानना है ज़रूरी
इच्छा विहीन ज़िन्दगी जीना भी
क्या है मजबूरी
ख्वाहिश को मचलते देखा है
पूरी नहीं होने पर
इस रहस्य में फँसे इन्सान को
बनते बदलते देखा है
दिली तमन्ना होती है पूरी
कभी अधूरी भी रह जाती है
पर हाँ…ख्वाहिश होतीं हैं पूरी…!
@अनिता चंद