लेखक की कलम से
निशाचर …
जब अंधेरा पाक हो
कलियारी अंधेरी रात हो
तू न जाना भूल कर
खेतों और खलिहानों में
जानवर कोई तुझे
छुप कर वहां बैठा मिलेगा
खून जिसके मुंह लगा है
इंसानियत की अस्मिता का
भेड़िया या आदमी हो
कुछ नहीं है फर्क पड़ता
तू अगर औरत है तो
संवेदना की परिधि से निकल
मां बहन और बेटी के
रिश्तों की कैद से
आजाद होकर
सांप हो या
भेड़िया फिर आदमी
फन विषैला कुटिलता की
धार की तलवार से
तुझको ही आगे बढ़कर
क्रूरता से कुचलना होगा
©मधुश्री, मुंबई, महाराष्ट्र