लेखक की कलम से

फौलाद हैं हम नारी …

 

आगोश में अपनी शर्मों हया को लेकर

 

दुनिया को बदलने की ताकत रखते हैं

 

जो दागदार करना चाहते हैं दामन को हमारे

 

क्या अपनी मां की कोख को वे बदनाम नहीं करते हैं?

 

औेरत हैं हम, कोई काग़ज़ का टुकड़ा नहीं

 

जो आबरू को हमारे टुकड़े टुकड़े करना चाहते हो

 

हम हैं तो जहां है

 

हम हैं तो तुम्हारा पूरा आसमान है।

 

जिस क्षण शरीर को छुआ तुमने

 

जीवन में अपनी जलजला को  बुलाया है तुमने।

 

कांच का टुकड़ा समझ फेंक न देना हमें

 

चुभ गए तो मरते दम तक तकलीफ होगी तुम्हें।।

 

©डॉ. जानकी झा

परिचय :- सहायक प्राध्यापिका, सरकारी हिन्दी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान, कटक, ओडिशा.

Back to top button