लेखक की कलम से

मूर्ख बनकर बुद्धिमानी से काम लेना मूर्खता तो नहीं…

बोध कथा

एक गाँव में एक बुद्धिमान रहता था, उसकी बुद्धि की ख्याति दूर दूर तक फैली थी।

एक बार वहाँ के राजा ने उसे चर्चा पर बुलाया। काफी देर चर्चा के बाद राजा ने कहा –

“महाशय, आप बहुत ज्ञानी है, इतने पढ़े लिखे है पर आपका लड़का इतना मूर्ख क्यों है ? उसे भी कुछ सिखायें।

उसे तो सोने-चांदी में मूल्यवान क्या है यह भी नहीं पता॥” यह कहकर राजा जोर से हंस पड़ा..

बुद्धिमान को बुरा लगा, वह घर गया व लड़के से पूछा “सोना व चांदी में अधिक मूल्यवान क्या है ?”

“सोना”, बिना एक पल भी गंवाए उसके लड़के ने कहा।

“तुम्हारा उत्तर तो ठीक है, फिर राजा ने ऐसा क्यूं कहा-? सभी के बीच मेरी खिल्ली भी उड़ाई।”

लड़के के समझ में आ गया, वह बोला “राजा गाँव के पास एक खुला दरबार लगाते हैं,

जिसमें सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होते हैं। यह दरबार मेरे स्कूल जाने के मार्ग में ही पड़ता है।

मुझे देखते ही बुलवा लेते हैं, अपने एक हाथ में सोने का व दूसरे में चांदी का सिक्का रखकर, जो अधिक मूल्यवान है वह ले लेने को कहते हैं…

और मैं चांदी का सिक्का ले लेता हूं। सभी ठहाका लगाकर हंसते हैं व मज़ा लेते हैं। ऐसा तक़रीबन हर दूसरे दिन होता है।”

“फिर तुम सोने का सिक्का क्यों नहीं उठाते, चार लोगों के बीच अपनी फजिहत कराते हो व साथ में मेरी भी❓”

लड़का हंसा व हाथ पकड़कर पिता को अंदर ले गया।

 

और कपाट से एक पेटी निकालकर दिखाई जो चांदी के सिक्कों से भरी हुई थी।

 

यह देख वो बुद्धिमान हतप्रभ रह गया।

लड़का बोला “जिस दिन मैंने सोने का सिक्का उठा लिया उस दिन से यह खेल बंद हो जाएगा।

 

वो मुझे मूर्ख समझकर मज़ा लेते हैं तो लेने दें, यदि मैं बुद्धिमानी दिखाउंगा तो कुछ नहीं मिलेगा। आपका बेटा हूँ अक़्ल से काम लेता हूँ।

मूर्ख होना अलग बात है

और मूर्ख समझा जाना अलग।

 

स्वर्णिम मौके का फायदा उठाने से बेहतर है, हर मौके को स्वर्ण में तब्दील किया जाए।

 

बुद्धिमान को भगवान ने बुद्धि जैसी अमूल्य धरोहर दी है इस पर शक मत करिएगा !! बस उचित समय पर ही लगाएं।

©संकलन – संदीप चोपड़े, सहायक संचालक विधि प्रकोष्ठ, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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