लेखक की कलम से

मैं थक गई हूं

लघु कथा

अमिता ऑफिस से आधे दिन की छुट्टी लेकर डॉक्टर के पास गई थी। उसके सिर और पैरों में बहुत दर्द रहने लगा था, पैरों में सूजन भी थी। डॉक्टर ने कहा तनाव और काम की अधिकता के कारण नसें कमजोर हो गई है। पैंतीस साल की उम्र में वह इतनी थकान और कमजोरी महसूस करने लगी थी‌। डॉक्टर के यहां भीड़ थी,घर पहुंच ने में आठ बज गए। उसे टेंशन हो रही थी फि,देर हो गई, मां जी को गुस्सा आ रहा होगा। रात का खाना बना चुकी होंगी, ससुर जी को ठीक आठ बजे खाना चाहिए होता है। घर पहुंचते ही अमिता तुरंत हाथ धो कर रसोई में घुस गई और बोली,” रोटी में सेंक देती हूं मांजी।”

सास ने उसके हाथ से चकला और बेलन लेते हुए कहा,” रहने दो बहु जब सारा खाना बन गया है तो रोटी सेंक कर क्या दिखाना चाहती हो? जाओ तुम आराम कर लो थक गई होंगी सुबह से इतना काम करते हुए।”

उधर दो साल का बेटा अमिता को देखकर लिपटा जा रहा था। सास की बेरुखी से दुखी होकर उसने बेटे को गोद में लिया और कमरे में आ गई। उसे रोना आ गया कोई उसकी मजबूरी नहीं समझता। पिछले दस साल से कमा रही थी, दोनों ननदों की शादी में उसकी सारी बचत लगा दी। अपने बच्चे को जन्म देने का निर्णय उसने ननदों की जिम्मेदारी पूरी करके लिया। सुबह सारा काम करके जाती, कोशिश करती सात बजे तक हर हाल में घर आ जाए और रात का खाना भी वह स्वयं बनाएं। उससे दोहरी जिम्मेदारी अब और नहीं निभाई जा रही थी। सुबह देर हो जाती तो बॉस की सुननी पड़ती शाम को देर हो जाती तो सास ससुर की।

जितनी देर ऑफिस में रहती घर की और बेटे की चिंता रहती। मन में ग्लानि रहती बच्चे को समय नहीं दे पाती है, उसके बचपन का आनंद नहीं ले पा रही है। उसको पहला कदम लेते नहीं देखा उसने। कई बार जब बेटे को बुखार होता, उसे छुट्टी नहीं मिलती। ऑफिस में उसका बिल्कुल काम में दिमाग नहीं रहता, ऐसे में जब काम खराब होता तो बास जलील कर देता। सास को लगता है नौकरी मजे के लिए कर रही है। घर गृहस्ती से आठ घंटे की छुट्टी मिल जाती है। उसने निश्चय किया वह और तनाव सहन नहीं करेगी। उसके शरीर ने जवाब दे दिया तो कैसे इतनी बड़ी जिंदगी काटेगी। बेटा उसकी गोद में लेट लेटे सो गया ‌तो वह कमरे से बाहर आ गई।

पति भी आ गया था उसे देखते ही चीखा, “तुम कमरे में आराम कर रही हो और सारा खाना मां ने बनाया है।” अमिता शांत स्वर में बोली,” हां मुझे देर हो गई थी बहुत ट्रैफिक था। मैंने अब निश्चय कर लिया है कि मैं नौकरी छोड़ दूंगी। घर में किसी को मेरी नौकरी की कोई आवश्यकता नहीं है और मां के ऊपर घर का सारा काम आ जाता है। अब मैं घर और बेटे को संभाल लूंगी और माजी आराम करेंगी।”

 कुछ पल तक तीनों उसका मुंह ताकते रहे फिर ससुरजी बोले,” क्या बात कर रही हो बहू, अभी मकान और कार की किस्त जा रही है। तुम नौकरी कैसे छोड़ सकती हो ?”

सास भी पीछे कैसे रहती, झट से बोली,” छोटी के बच्चा होने वाला है, उसमें बहुत खर्चा होगा। इस समय नौकरी छोड़ना बेवकूफी है।”

पति भी थोड़ा शांत स्वर में बोला,” बिट्टू को भी चार महीने बाद प्ले स्कूल में डालना है। खर्चे तो और बढ़ेंगे। यह क्या बेकार की बात सोच कर बैठ गई।”

वह उदास स्वर में बोली,” हांड़-मांस की बनी हूं और मुझ से इतनी उम्मीदें लगाते हो। पुरुष की नौकरी नौकरी लगती है, वह आता है तो थका हारा होता है और औरत नौकरी आराम करने जाती है। मैं दोहरी जिम्मेदारी से थक गई हूं।”

ससुर लाड़ जताते हुए बोले, “बेटा कैसी बात कर रही हो? मैं तो हमेशा कहता हूं मेरी बहू कितनी काबिल है।”

सास भी एकदम से बोली,” कभी गुस्से में कुछ बोल दिया तो बुरा नहीं मानते बेटा। तुम टेंशन मत लो सब ठीक हो जाएगा।”

पति भी चापलूसी भरे शब्दों में बोला,” वह तुम्हारे सिर में दर्द रहता है ना इसलिए घबरा गई हो। कल डॉक्टर से दवा दिलवा कर लाता हूं, देखना सही लगने लगेगा तुम्हें।”

अमिता जानती थी इस महंगाई के समय में वह नौकरी छोड़ नहीं सकती है लेकिन वह अपने मन और तन का ध्यान अवश्य रख सकती है।

©सीमा जैन, दिल्ली

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