लेखक की कलम से

गुरुद्वारा दातन साहिब जहां गुरुनानक देव पहुंचे थे, यहां अब शिक्षा की अलख भी जगाई जा रही है …

कटक। गुरुद्वारा गुरुनानक दातन साहिब कटक शहर शिखरपुर के इलाके में स्थित है जो कि ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से 25 कि.मी. की दूरी पर है। यह ऐतिहासिक गुरुद्वारा सिखों के प्रथम गुरुनानक देवजी की ओडिशा यात्रा की स्मृति में प्रतिष्ठित है। यह गुरुद्वारा ओडिशा एवं भारतवर्ष में सिखों के प्रमुख गुरुद्वारा में से एक है। यहां अब शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर भी जोर दिया जा रहा है। गुरुनानक देव के नाम पर संचालित स्कूल के माध्यम से शिक्षा का अलख जगा रहे हैं।

गुरु नानक देव जब आसाम एवं बंगाल यात्रा के पश्चात ओडिशा पहुँचे। कटक यात्रा के दौरान वे शिखरपुर महानदी पर ठहरे। गुरु के निवास स्थान के निकट ही चैतन्या भारती नामक साधु रहते थे, जो कि भैरव देव की पूजा करता था। कटक वास दौरान जब काफी स्थानीय लोग गुरुनानक के दर्शन करने के लिए आने लगे, गुरु की बढती ख्याति देख कर चेतन्या को बर्दास्त नहीं हुआ वह ईर्ष्या वंश तंत्र विघा का प्रयोग कर गुरुनानक देव के अनिष्ट की कामना करने लगा, ताकि गुरु कटक छोड कर चले जाए। गुरु पर जब तंत्र विघा का कोई प्रभाव पड़ा। तब एक दिन क्रोधित होकर साहाड़ा वृक्ष की एक डाल को तोड़ कर गुरु पर प्रहार करने की कोशिश करने लगा।उसी समय गुरु का ध्यान भंग हो गया। और उनके मुख मंडल के आलौकिक तेज तथा आँखों का नूर देख कर चेतन्या के हाथो से डाल छूटकर जमीन पर जा गिरी और उसे अपनी गलती का अहसास हो गया।

1947 के पूर्व कटक में सिखों परिवार बहुत कम थे। भारत आजाद होने के बाद बर्मा एवं पाकिस्तान से कुछ सिख परिवार ओडिशा आ गए। संगत बढने से, पास वाली जमीन खरीद कर एक नए गुरुद्वारा की इमारत तैयार की गई। 1988ई. में श्रीगुरुग्रन्थ साहिब का प्रकाश नए गुरुद्वारा में किया गया। पुराने गुरु द्वारा में गुरुनानक देव के नाम से “गुरु नानक पब्लिक स्कूल कटक” में खोला गया। जिसमें सभी धर्मों के बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे है। किसी भी जाति, धर्म तथा वर्ण के लोग गुरद्वारा आकर गुरु ग्रन्थ साहिब के दर्शन कर सकते है। यहाँ बडे-छोटे, अमीर -गरीब का कोई भेदभाव नहीं किया जाता। यहाँ सभी एक साथ पंतग (कतार) में बैठ कर लंगर (भोजन) छकते है। यात्रियों के यहाँ रहने का पूरा प्रबंध है।

ओडिशा सिख प्रतिनिधि बोर्ड का हैड आफिस गुरुद्वारा गुरु ” गुरुनानक दातन साहिब में स्थित है। जिस द्वारा ओडिशा की सारी सिख संगत को एक धागे में पिरोकर रखा है।

वाहे गुरु का खालसा

वाहेगुरु की फतेह

गुरुजी ने चेतन्या को चेतना बख्शी ओर सच्चे नाम संग जुडने का उपदेश दिया। चेतन्या ने साहाड़ा वृक्ष की टहनी गुरुनानक देव को व्यवहार करने के लिए दी। इस टहनी के अंश को व्यवहार करके गुरु ने बाकी टहनी को जमीन में रोपण कर दिया। धीरे-धीरे वह टहनी एक विशाल वृक्ष के रूप में बदल गई। यहाँ की संगत श्रृद्धा से उसी साहाड़ा वृक्ष के दर्शन करने आती है।

संकलन : आकांक्षा रूपा चचरा, शिक्षिका हिंदी विभाग, गुरु नानक पब्लिक स्कूल कटक ओडिशा

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