लेखक की कलम से

चांद ज़रा जीवन फलक पर आना….

चांद ज़रा जीवन फलक पर आना,
शीत चांदनी अंतस तक फैलाना ।

सारी क्लान्ती को आगोश में लेना,
जीवनशांति छइयां सब पर देना।
मनु पर अमृत की धारा बरसाओ,
दुविधाओं की लहरों से पार खेना।

चांद ज़रा जीवन फलक पर आना,
शीत चांदनी अंतस तक फैलाना।

चांद चमकाते सुहागिनी के भाल को,
बहुरंगों से सजाते उनके संसार को।
ममता आंगन को एक सा चमकाना,
नेह से प्लावित करना जहान को।

चांद ज़रा जीवन फलक पर आना,
शीत चांदनी अंतस तक फैलाना।

फूल,शूल,डाल,मूल एक सा महकाना,
निर्धन,धनवान को एक सा चमकाना।
आह्लादित कर यूँ सबको महकाओ,
समरसता के रस से सबको रसाना।

चांद ज़रा जीवन फलक परआना,
शीत चांदनी अंतस तक फैलाना।

जाति,धर्म,रंग के फेर में न पड़ना,
सांप्रदायिकता से परहेज करना।
धरती को खुशियों की सेज़ बनाना,
विवादों की खाई को मन से पाटना।

चांद ज़रा जीवन फलक पर आना,
शीत चाँदनी अंतस तक फैलाना।

कुनीति,चक्र,कुचक्र में ना फँसाना,
वर्चस्व से स्वयं को सर्वदा बचाना।
सरलता,सादगी जीवन के श्रृंगार,
नेहा को ममता की छावनी बनाना।

चांद ज़रा जीवन फलक पर आना,
शीत चाँदनी अंतस तक फैलाना।

चांदनी को अंतरात्मा तक पहुंचाना,
सुविचार से सबके मन को बहाना।
शीतलता की बूँदों से मन हर्षाना
शांति मनोनीत नित्य प्रति सजाना।

चांद जरा जीवन फलक पर आना,
शीत चाँदनी अंतस तक फैलाना ।

©अल्पना सिंह, शिक्षिका कोलकाता 

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