लेखक की कलम से

होली म कोरोना के बाधा …

 

झन आबे गोरी, ये बच्छर खेले बर तै होरी।

कोरोना के कहर जारी हे, समझबे मजबूरी।।

 

तोर मोर बीच म,हावय ये कोरोना के बाधा।

मोर हालत ल तहू ह,समझ लेबे ओ राधा।।

 

मैं सोचे रहे हों तोला,लगाहूँ रंग अउ गुलाल।

फेर का बतावंव, कोरोना के बदल गे चाल।।

 

घुमे बर झन आबे गोरी,ऐसो तेहा मोर पारा।

तोला पता नइ हे पगली, लगे हे 144धारा।।

 

ये बच्छर नइ मिले,तोला भांग अउ बताशा।

पुलिस के हाथ चढ़े ले,बाढ़ जहि रे तमाशा।।

 

नइ आवंव ये बच्छर मेहा ,लेके रे पिचकारी।

समझबे मजबूरी ल,कवारेन्टाइन हे ये दारी।।

 

भीड़भाड़ म झन जाबे ,मुंह म लगाबे मास्क।

पकड़ के ले जाहि तोला,नइ तो पुलिस टॉस्क।।

 

झन बजाबे डीजे, अउ झन बजाबे तै नगाड़ा।

कोरोना के चक्कर म,हो जहि रे सब कबाड़ा।।

 

जिंयत -जागत रहिबो ,कोनो अवइया साल म।

दुनों झन होली खेलबो,फेर हमन  हर हाल म।।

 

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)

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