लेखक की कलम से

तुम नहीं थे! …

आज पुनः
तुम्हारे ठौर गयी!
पर तुम नहीं थे ,
मैं लौटा आई!
कितने ही अपूर्ण ख्वाबों को लिए,
अव्यक्त अफसानो को लिए,
संग तुम्हारे व्यक्त होनी थी
सब हृदय में दबाए लौट आई
तुम नहीं थे,अपने ठौर!
मैं एकाकी,
शांतभाव से लौट आई…
अंतस में अपूर्ण कामना लिए,
चक्षुओं में अपूर्ण तृष्णा लिए,
संग तुम्हारे पूर्ण करनी थी,
सब मन में लुकाए-छुपाए
लौट आयी,
तुम नहीं थे,अपने ठौर
पर!
मैं निराश,निराधार हो,
पुनः लौट आई!
कितनी योजनाएं लिए
विचारों में,
कितनी तत्परता,
उच्छृंखल लिए व्यवहारों में,
सब संयमित कर
लौट आयी
तुम नहीं थे,अपनी ठौर!
और
मैं अभिज्ञ,अनासक्त हो
पुनः लौट आई!
अब बारंबार बिह्वल होती
विचारों के….
अति आवेगों में बहती
अपूर्ण तमन्नाओं के स्वप्न संजोये!
मैं पुनःभटकती द्वार पर
तुम्हारे पहुंची
पर तुम नहीं थे ,अपनी ठौर!
और
मैं फिर से अधूरी चाहत लिए लौट आई।
पर तुम नहीं ….

 

©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता                            

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