लेखक की कलम से

नसीब-ए- जिल्लत …

ग़ज़ल

नसीब-ए- जिल्लत का फरमान क्या बतायें

चंद लफ्जों में इश्क़ तुमको जान क्या बतायें

 

हसरत थी मुक्कमल अपना कारवां चलता

बाकी क्या-क्या रह गए अरमान क्या बतायें

 

इस वीरानगी का सबब क्या पूछते हो जनाब

हैं दर्द गम तन्हाई कितने मेहरबान क्या बतायें

 

इस इश्क़ ने मुझे सबकी नज़रों से गिरा दिया

किस तरह लुट गया अपना ईमान क्या बतायें

 

एक इशारे पर ना जाने क्या क्या हो जाता था

किस कदर थे मोहब्ब्त में कुर्बान क्या बातयें

 

हर बार ही वो मेरे जज्बातों से खेल जाता था

मेरा रकीब था कितना शैतान क्या बतायें

 

जो पूछते हो कि संभाल के क्या-क्या रखा है

अंगूठी, खत, गुलाब और समान क्या बतायें

 

‘ओजस’ जिसकी याद में जलकर शोला हुआ

अपनी बर्बादी अपनी ही जुबान क्या बतायें

 

शब्दार्थ :-

नसीब ए जिल्लत – किस्मत की परेशानी

फरमान – लिखा हुआ

मुक्कमल – पूरा

कारवां – साथ

वीरानगी – अकेला

 

©राजेश राजावत, दतिया, मध्यप्रदेश

 

Back to top button