लेखक की कलम से

निर्बल के नाथ, भोलेनाथ …

 

शिव अर्थात जो कल्याणकारी है वही शिव है।

शिव समान भाव के देव है जो देव – दानव, जीव -जंतु, वनस्पति सभी को एक दृष्टि से देखते हैं। शिव शरणागत की रक्षा करने वाले देव है। जिसे दुनिया ने हेय समझ कर दुत्कार दिया शिव ने उसे कंठ लगा लिया फिर चाहे वह हलाहल हो या सर्प!!

भगवान शिव के प्रति सभी भक्ति और निष्ठा का भाव रखते है। विरोधियों और शत्रुओं को मित्र बना लेना , सभी से प्रेम करना , निर्बल के लिए करुणा ,दया का भाव रखना ही सच्ची शिवभक्ति है।

शिव अच्छे – बुरे , ऊँचे – नीचे  से परे देखने वाले पतित पावन देवता है जिन्होंने दैत्यों को भी देवताओं के बराबर ही समझा ।

शिव के गले में मुण्डमाला और देह पर लिपटी श्मशान की राख, इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में किया हुआ है ।

शरीर पर व्याघ्र चर्म ,हिंसा और अहंकार के दमन का प्रतीक है।

बूढ़े बैल की सवारी करते शिव निर्बल को शरण देते हैं ।

बेलपत्र ,धतूरा से की गयी पूजा से प्रसन्न होने वाले भोलेनाथ गरीब असहायो के देव हैं ।

जो कैलाशवासी हैं, चंद्रमा का मुकुट धारण करते हैं

शिव प्रकृति पुरुष है जो सहज प्राप्त है वही शिव को प्रिय है ,वही पर्याप्त है ,उतने में ही आनंदित रहने का संदेश देते हैं शिव अपने भक्तों को …

इस संसार के प्रथम स्त्रीवादी अगर शिव को कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी।

हम जिस परमात्मा या परमशक्ति की आराधना करते हैं वह और कोई नहीं बल्कि शिव – शक्ति का संयोग है।

 

जब भगवान शिव के परम भक्त ऋषि भृंगी ने उनकी प्रदक्षिणा करनी चाही तो शिव ने कहा कि शिव के साथ शक्ति की भी प्रदक्षिणा करनी होगी क्योंकि उनके बिना मैं अधूरा हूं । भृंगी ने यह बात नहीं मानी वे शिव और शक्ति के बीच से प्रवेश करने लगे तो देवी, शिव की जंघा पर बैठ गयी , जिससे ऋषि का प्रयास निष्फल हुआ तत्पश्चात भृंगी भौरे का रूप धारण कर शिव की गर्दन की परिक्रमा करने लगे ।तब शिव शक्ति एक शरीर हो गए ,अर्धनारीश्वर रूप में शिव शक्ति को देखकर ऋषि हाथ जोड़कर नतमस्तक हो गए।

शिव का शक्ति को अपने शरीर का आधा भाग बनाना यह बताता है कि स्त्री की शक्ति और सम्मान के बिना पुरुष  पूर्ण नहीं है ।

स्त्री हृदय की करुणा ,सौन्दर्य और समभाव, पुरुष के तपस्वी, शांत ,सौन्दर्य विमुख हृदय को रसों से परिपूर्ण कर देता है । यही सृजन का मूल भाव है।

शक्ति से मिलन उपरान्त कैसे एक महायोगी गृहस्थ हो जाता है , स्त्री की तपस्या पुरुष से भिन्न है वह निज सुख को परे रख तपस्या करती है ,परिवार और संसार के हित में शक्ति ललिता हो जाती है ,अन्नपूर्णा हो जाती है, तो शिव भी भैरव रूप त्याग कर शंकर ( शांत ) हो जाते है।

यही स्त्री ,पुरुष का संतुलन जीवन की मधुर ध्वनि है ।

 

अगर शिव – शक्ति को प्रकृति और पुरुष के द्रष्टिकोण से भी देखा जाए तो पुरुष प्रकृति के साथ मिलकर खूबसूरत संसार की रचना करता है । वही पुरुष अपनी प्रकृति से होती छेड़छाड़ से आक्रोशित हो तांडव करता है तो बवंडर उठते है ,उथल- पुथल मच जाती है , चहुओर त्राहिमाम होने लगता है ।

इसके साथ – साथ सती का अग्नि कुण्ड में कूदने पर शिव का रौद्र रूप धारण करना एक पुरुष का स्त्री से प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाता है।

शिव पत्नी रूप में शक्ति की इच्छाओं का अतिक्रमण नहीं करते ,नहीं तो सर्वज्ञानी होते हुए भी राजा दक्ष के यहा उन्हें क्यों जाने देते ।

और फिर युगों – युगों का वियोग सहते।

शायद ऐसे ही प्रेम की प्रत्येक स्त्री के हृदय में कामना हो तभी तो किसी राजा महाराजा के जैसे पति या प्रेमी के स्थान पर शिव जैसे साथी को खोजती हैं।

 

महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर शिवभक्तों को यही संदेश है कि प्रकृति को खूबसूरत बनाओ ,उसका अनुचित दोहन करना ठीक नहीं है।

शिव की भक्ति के लिए तमाम प्रपंचो की आवश्यकता नहीं है ,शिव तो श्रद्धा के देव हैं ।

दिन दुखियों की सेवा करने , निर्बलों का सहारा बनने , पशु- पक्षियों , जीव – जंतुओं की रक्षा करने और स्त्रियों को सम्मान करने से शिव सहज ही मिलते हैं ।

 

©चित्रा  पवार, मेरठ, यूपी

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