लेखक की कलम से

घणा दिना सु आया…

 

झकरा में बळगी काया

बालम घणा दिना सु आया

झकरा में बळगी काया

बालम घणा दिना सु आया

आता ने लाड लडाया

बालम घणा दिना सु आया

 

थाके मन री थे जानो

मैं म्हारे मन री गाऊँ

भरी दोपहरा उचूँ मोट

और आथा ने बतलाऊं

झकरा में बळगी काया

बालम घणा दिना सु आया

 

साझे सवेरा झेला भरती

कुमला गई मारी काया

टावर टीगर रोवा लाग्या

ढोर ढांढा भीं अलड़ाया

झकरा में बळगी काया

बालम घणा दिना सु आया

 

चूला माथे रोटी पोऊ

राबड़िया भी रान्दू

जीजी थारी नहावे

कोनी रगड़ रगड़ नहलाऊँ

म्हारे हिवड़ा में हुक उड़े

कोणी जा बतलाऊ

झकरा में बळगी काया

बालम घणा दिना सु आया

 

नणद बाई रोबा लागी

भात भरण कोणी आयो

अरे कोरोना महामारी के आगे

कुणकी चाले भाया

झकरा में बळगी काया

बालम घणा दिना सु आया

 

©कांता मीना, जयपुर, राजस्थान                

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