लेखक की कलम से

जो तुम आ जाते एक बार …

 

जो तुम आ जाते एक बार

सिंगार अपना संवार लेती

जो तुम आ जाते एक बार

तन मन तुम पर वार लेती ।

 

सारे मौसम आते जाते

पर प्रिय क्यों तुम न आते

क्षीण काय विरह में होती

यह वियोगिनी रैन न सोती

आते जो एक बार , जीवन कर न्यौछावर लेती ।

 

बिन तेरे पावस भी डराये

कौन पिया अब झूला झूलाते

गरज गरज गरजे घन दामिनी

कैसे बीते प्रियवर यामिनी

आते जो एक बार , जी भर मैं कर प्यार लेती ।

 

वो वेगीले मलय का चलना

पनघट जाती पायल झनकना

दिल खिसिया खिसिया जाता

तिल तिल कर मरता जाता

आते जो एक बार , तनिक तुमको मैं निहार लेती ।

 

उस चातक सी है प्यास मेरी

कब आये तू है यह आस मेरी

राह तकूँ आजा अब प्रियवर

अब तो बन जा तू दिलवर

आते जो एक बार , मैं कर सोलह श्रृंगार लेती ।

 

  ©डॉ मधु त्रिवेदी, आगरा, उत्तरप्रदेश    

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