ओ मातृशक्ति है नमन तुझे …
ओ मातृशक्ति है नमन तुझे,
है अनेक रूपा दुर्गा तू,
दुष्ट दामिनी बन
करती दमन शत्रु की,
जननी बन वात्सल्य लुटाती,
ममतामयी अमृत प्याला तू,
प्रिया बन प्रिय को लुभाती तू ,
दोस्त बन सहचरी बन जाती तू,
सहस्रों बरसों से तुझे
जकर वेरी में समाज
ने सताया तुझे,
पर अब न सहेगी दमन कोई,
है स्वच्छंद अब स्वाबलंबी तू,
अब गाड़ी रूपी जीवन के दो पहिए की,
एक प्रभावशाली पहिया तू,
है स्वीकारा समाज ने कि
न रहेगा कोई भी क्षेत्र अछूता तुझसे,
तू ही आदि सृष्टि की है,
तू ही सृष्टि का अंत भी,
करे न सम्मान तेरा वह
समाज का कोई अंग नहीं,
हां, माना कभी वैदिक युग में,
मानी जाती थी श्रेष्ठा तू,
पर कालांतर में युग बदला,
और हो गई थी दमन का शिकार तू,
पर अब चले गए दिन वो,
न सहेगी कोई प्रताड़ना तू ।
तुझी से ये दुनिया शुरू है मेरी
तुझी से ये दुनिया शुरू है मेरी,
तुझी से ये दुनिया खत्म है मेरी,
ओ मेरे हमदम,मेरे हमनशी,
ये चांद तारे ,यह बादल घनेरे,
ये ठंडी हवाएं, ये पेड़ घनेरे,
ये झरनों की सरगम ,
ये पहाड़ों के मेले,
तुझी से है रंगत, इन वादियों में,
जो तू नहीं तो, कुछ भी नहीं है,
ओ मेरे हमदम, मेरे हमनशी,
तुझी से ये दुनिया………
बिन तेरे जी लगता ही नहीं है,
ना देखूं तुझे तो, कुछ भाता नहीं है,
मोहब्बत का हमारा प्यारा सफर है,
छोड़ोगे न तुम कभी साथ हमारा,
भरोसा है तुझ पर हद से भी ज्यादा,
मिलेंगी हमें मंजिल, इस बात का यकी है,
ओ मेरे हमदम मेरे हम नशी,
तुझी से ये दुनिया…….
इक राह के हम राही हैं दोनों,
रब को भी इस बात की खबर है,
साथ जिएंगे साथ मरेंगे,
यही है एतवार हमारा,
नहीं दुनिया वालोंं से,
अब डर है हमारा,
ओ मेरे हमदम मेरे हम नशी,
तुझी से ये दुनिया शुरू है मेरी
तुझी से ये दुनिया खत्म है मेरी,
ओ मेरे हमदम मेरे हम नशी…..।।
©पूनम सिंह, नोएडा, उत्तरप्रदेश