लेखक की कलम से

दूर-दूर रहना …

जब-जब चैत श्रृंगार करे

मह मह महुआ महक उठे

टह टह टेसु लहक उठे

जस प्रीत की रीत चले

तब तब कोयल कुहके

मंज़र ओढ़ आम उतरे

ओहो बसंत बगिया में

बौराकर उमड़े-घूमड़े!

©लता प्रासर, पटना, बिहार               

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