लेखक की कलम से

एकता परिषद ने आधी आबादी को बनाया सशक्त …

जमीन के मुद्दे पर सक्रिय हुई एकता परिषद ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में आधी आबादी को उनके अधिकारों के लिए जागरूक किया है। नतीजतन आज एकता परिषद  में अनेक महिला कार्यकर्ता सक्रिय हैं जो महिला अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं। उन्हें महिलाओं को जागरूक बनाने में हालांकि कई तरह की कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ रहा है बावजूद वे रुकी नहीं है। उनकी कोशिश है कि महिलाओं को वे सब अधिकार मिलने चाहिए जो पुरुषों को प्राप्त हैं। घर के बाहर सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की सक्रिय मौजूदगी के लिए भी कई प्रयास किए जा रहे हैं।

जमीन के मुद्दे पर एकता परिषद द्वारा की गई अब तक सभी छोटी बड़ी यात्राओं में भी अपनी भागीदारी से महिलाओं ने आंदोलन  को मजबूत किया। एक बार 2018 में एकता परिषद ने श्रद्धा कश्यप के नेतृत्व में महिला अधिकार संवाद यात्रा का आयोजन किया। कन्या कुमारी से दिल्ली तक चली इस यात्रा में श्रद्धा कश्यप, कस्तूरी पटेल और शोभा तिवारी शामिल थीं। 12 राज्यों से गुजरती हुई इस यात्रा में सैकड़ों संगठनों ने स्वागत किया और यात्रा के मकसद की सराहना की। महिला अधिकारों को लेकर की गई यह यात्रा आम महिलाओं तक अपना संदेश पहुंचाने में कामयाब रही। अपने देश में अपनी विशेषताओं के कारण अपनी तरह की यह पहली यात्रा थी।

11 हजार किलोमीटर की  इस यात्रा के जरिए  महिला कार्यकर्ताओं ने देश भर की महिलाओं को किसान का दर्जा देने की मांग को बल प्रदान किया। साथ ही उनके अनुकूल समाज निर्माण के लिए महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में कूदने के आह्वान किया। क्योंकि घरों में दुबकी रहने के कारण भी महिलाओं की समस्याओं का समाधान नहीं होता और वे चुप चाप अत्याचार झेलती रहती हैं। देखा गया है कि जब भी न्याय के लिए महिलाएं घरों से बाहर निकलती है तो उन्हें ना केवल न्याय मिलता है बल्कि बहुत सी महिलाओं को शोषण के दुष्चक्र से बाहर निकलने की प्रेरणा भी मिलती है। हालांकि महिलाओं के हित में कई कानून बने हैं लेकिन जानकारी और जागरूकता के अभाव में खासकर ग्रामीण महिलाएं  उनका लाभ उठाने से वंचित रह जाती हैं।

गौरतलब है कि खेती में पुरुषों के बराबर महिलाएं काम करती हैं लेकिन सरकारी दस्तावेजों में उनका जिक्र नहीं होता है। इसकी वजह से ना सिर्फ कई तरह को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है बल्कि कई तरह की सरकारी लाभों से वंचित रहती हैं। इसलिए एकता परिषद की ओर से उनको खेती की जमीन का मालिकाना हक दिलाने के साथ आवासीय जमीन का पट्टा भी उनके नाम करवाने की कोशिश की जा रही है। इन कोशिशों का बेहतर नतीजा अा रहा है। हालांकि इस दिशा में लंबे संघर्ष करने की जरूरत है। महिलाएं स्वयं से खेती कर रही हैं तालाब खुदवा कर मछलियों का पालन कर,अन्य गृह उद्योग में कदम रख कर अपनी आजीविका की दृढ़ कर रही हैं। वृक्षारोपण कर जंगल को दायरा बढ़ा रही हैं। साथ ही विभिन्न तरह की सामाजिक बुराइयों का भी प्रतिकार कर रही हैं। बच्चों को शिक्षित कर रही हैं। युवाओं को समाज के विकास में सक्रिय कर रही हैं। महिलाओं को सामाजिक और राजनैतिक रूप से जगाने के मकसद से निकली इस यात्रा का महिलाओं पर बेहतर असर पड़ा।

एकता परिषद ने यह समझा कि महिलाओं के सहभाग के बिना हर बदलाव अधूरा है। इसलिए देश के खास कर आदिवासियों, दलितों और वंचितों के बीच एकता परिषद ने महिलाओं के बीच नेतृत्व उभारने के मकसद से प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया। प्रशिक्षण के बाद एकता परिषद के अभियानों में महिलाओं ने बढ़ चढ़ कर भाग लेना शुरू किया। अब तो वे स्वतंत्र रूप से महिलाओं के बीच उनके अधिकारों और कर्तव्यों के लिए संगठन और संघर्ष के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में रचनात्मक कार्य कर रही हैं। उनको कदम कदम पर कामयाबी मिल रही है और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कारों से भी नवाजा जा रहा है।

एकता परिषद की श्रद्धा कश्यप के नेतृत्व में महिलाओं की गतिविधियों का विस्तार हो रहा है और जिल बहन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आधी आबादी को सशक्त बनाने में जुटी है। एकता परिषद की महिला कार्यकर्ता अपने अपने क्षेत्रों में काम कर रही हैं लेकिन उनका विजन अंतरराष्ट्रीय है। जिल बहन के नेतृत्व में एक बार जलगांव में दुनिया भर में महिला अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही सामाजिक कार्यकर्ताओं का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में एकता परिषद से जुड़ी महिलाएं समझ व जान सकीं कि महिलाएं हर जगह शोषित हैं और पुरुषों के वर्चस्व की शिकार होती रहती हैं। न्याय और शांति के लिए इस साल निकाली गई है जगत वैश्विक यात्रा में भी भारत सहित विभिन्न देशों की महिलाओं ने भाग लिया।

अभी हाल ही में वूमेंस वर्ल्ड समिट फाउण्डेशन  द्वारा दुनिया भर में ग्रामीण जीवन में महिलाओं के रचनात्मक कार्य पुरस्कार 2020 के लिए एकता परिषद जन संगठन की तीन महिला कार्यकर्ताओं को चुना गया।  वूमेंस वर्ल्ड समिट फाउण्डेशन जिनेवा के द्वारा ग्रामीण जीवन में महिलाओं के रचनात्मक कार्य के लिए वर्ष 2020 के पुरस्कार की घोषणा की गयी , जिसमें भारत की चार महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं का भी नाम है। इसमें एकता परिषद के तीन बहनों मध्यप्रदेश की सरस्वती उइके (रायसेन), शबनम शाह (अशोकनगर) तथा निर्मला कुजूर (कोरबा, छत्तीसगढ़) का नाम शामिल है। मूलतः बैतूल जिले के गौंड आदिवासी समाज में जन्मी सरस्वती उइके वर्तमान में रायसेन जिले में गोंड, भील, भीलाला जनजाति के वनाधिकार और सशक्तिकरण के लिए काम कर रही हैं।

गौहरगंज और सिलवानी तहसील के कई गांवों में जन जागरूकता के माध्यम से संगठन निर्माण और भूमि अधिकार को लेकर बड़ा काम किया है। इनके प्रयास से रायसेन जिले में दर्जनों गांव में सैकड़ों आदिवासी परिवारों को वनभूमि का व्यक्तिगत अधिकार और सामुदायिक अधिकार मिला है। इसी तरह से अशोकनगर की रहने वाली 33 वर्षीय शबनम शाह अति पिछड़ी जनजाति सहरिया के सशक्तिकरण और भूमि अधिकार को लेकर अभियान चला रही है। इनके प्रयास से अशोकनगर जिले के कई गांव में सहरिया आदिवासियों की भूमि समस्या हल हुई है और कुछ पर संघर्ष चल रहा है।

तीसरी छत्तीसगढ़ की रहने वाली निर्मला कूजुर उरावं जनजाति की है, जो कोरबा जिले में पाण्डो, धनवार और उरांव जनजाति के बीच भूमि अधिकार और ग्राम स्वराज पर काम कर रही हैं। तीनों महिलाओं को ग्रामीण जीवन में महिलाओं के सशक्तिकरण के अभियान में नेतृत्व को देखते हुए जय जगत वैश्विक पदयात्रा के लिए चयन किया गया था, जो दिल्ली से लेकर अरमेनिया तक की पदयात्रा में शामिल रहीं।  वूमेंस वर्ल्ड समिट फाउण्डेशन का गठन बीजिंग में 1994 में हुए विश्व महिला सम्मेलन के दौरान किया गया था। इस फाउण्डेशन के द्वारा ग्रामीण जीवन में रचनात्मक कार्यो के लिए अब तक दुनिया भर के 140 देशों के 462 महिलाओं को पुरस्कार दिया गया है।

 इस पुरस्कार में 1000 डालर सहित प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। इस पुरस्कार के कारण एकता परिषद सहित अन्य संगठनों में सक्रिय समाजसेवी महिलाओं में उत्साह का संचार हुआ है। एकता परिषद के संस्थापक राजगोपाल पीवी विख्यात गांधीवादी चिंतक है। उन्होंने गांधी जी के विचारों के अनुरूप महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए प्रारंभिक दौर में ही पुरुष और महिलाओं में समानता के लिए कार्य शुरू किया। आज एकता परिषद की महिलाओं ने साबित किया है कि वे देश दुनिया की हरेक चुनौतियों का सामना कर सकती हैं और अपने प्रयत्नों से बेहतर दुनिया बना सकती हैं।

 

©प्रसून लतांत

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