“मां”
क्या कहूं मैं
मां बिन तेरे
काम मैं क्या-क्या
कर जाता हूं
झूठा-झूठा
जी लेता हूं
सच्चा सच्चा
मर जाता हूं
क्या कहूं मैं…
याद मुझे है
सारी बातें
जो जो लाड
लडाए हैं
सच्च कहते हैं
दुनिया वाले
बीते दिन
कब आए हैं?
याद तेरी जब
आए मुझको
आंख से मोती
बस जाते हैं
झूठी-झूठी
सुन जाते हैं
सच्ची-सच्ची
कह जाते हैं
क्या कहूं मैं…
तेरा कर्ज़ उतारूं
कैसे?
यही सोचता रहता हूं
एक जन्म मिल जाए
और कहीं
प्रार्थनाओं में कहता हूं
लगे प्रतिपल
पास तू मेरे
बिन तेरे
अकेला लगता हूं
झूठा-झूठा
रात को सोऊं
सच्चा-सच्चा
जगता हूं
क्या कहूं मैं…
मात-पिता सम
नहीं दूसरा
लिखा है
वेद, पुराणों में
तुम ही
सबसे उच्च स्थान पर
मेरे कविताओं
गानों में
अगर कभी
इस दुनिया से मैं
तुझसे पहले चला जाऊं
उदास न होना
बस यह कहना
तेरी गोद में
फिर आऊं
तू है समझे
मन की मेरे
इसीलिए
बतला जाता हूं
झूठा-झूठा
दूर हूं
तुझसे
सच्चा-सच्चा
पास आ जाता हूं
क्या कहूं मैं मां बिन तेरे…