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‘कोई अस्पताल गर्भवती लड़की के इलाज के लिए आपराधिक मामला दर्ज करने पर जोर नहीं दे सकता : बॉम्बे हाई कोर्ट

मुंबई
बॉम्बे हाई कोर्ट ने गर्भवती नाबालिग लड़की के मामले को लेकर बड़ा आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि अस्पताल किसी गर्भवती नाबालिग लड़की को सिर्फ इसलिए इलाज से इनकार नहीं कर सकता… कि पुलिस में कोई शिकायत दर्ज नहीं हुई है। एचसी ने यह टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान की। इस केस में 17 वर्षीय गर्भवती नाबालिग का कहना था कि वह अपने साथी (नाबालिग) के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं करना चाहती, क्योंकि उनके बीच संबंध सहमति से बने थे। जस्टिस जीएस कुलकर्णी और फिरदोश पूनीवाला की खंडपीठ ने इसे लेकर सुनवाई की। इसने अपने फैसले में कहा, 'कोई अस्पताल गर्भवती लड़की के इलाज के लिए आपराधिक मामला दर्ज करने पर जोर नहीं दे सकता।'

मालूम हो कि भारत में नाबालिग के साथ यौन संबंध को बलात्कार के तौर पर दंडित किया जा सकता है, अगर दोनों में से कोई एक साथी वयस्क है जबकि दूसरा नाबालिग है। अगर कोई वयस्क नाबालिग के साथ यौन संबंध बनाता है, तो वह भी यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO अधिनियम) के तहत सजा का हकदार होगा। हालांकि, इस मामले में कोर्ट को बताया गया कि दोनों पार्टनर ही नाबालिग हैं। साथ ही, नाबालिग लड़की ने यह भी कहा कि संबंध सहमति से बने थे। उसने अपने साथी के बारे में और ज्यादा खुलासा करने से इनकार कर दिया, इसलिए कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया गया।

लड़की से मांगी गई पुलिस शिकायत की कॉपी
ऐसी परिस्थिति के बावजूद वह लड़की जिस भी अस्पताल या मेडिकल क्लिनिक में इलाज के लिए पहुंची, उसे वहां इस बात पर जोर दिया कि पहले पुलिस शिकायत की कॉपी दिखाए। इससे परेशान होकर उसने राहत पाने के लिए अपने पिता के जरिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इनके वकील का तर्क रहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत उसके अधिकारों को देखा जाए। इसलिए गर्भवती लड़की को इलाज मुहैया कराने से इनकार नहीं किया जा सकता है। इसके जवाब में सरकारी वकील पूर्णिमा कंथारिया ने आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि लड़की अपनी पहचान उजागर किए बिना सरकारी अस्पताल में मेडिकल ट्रीटमेंट हासिल कर सकती है।

 

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