लेखक की कलम से

भारत को कितने नामों से जान सकते हैं इसकी पड़ताल कर रहे हैं लोकसभा सचिवालय के कार्यकारी अधिकारी सलिल सरोज

भारत को अनेकों जगह” आर्यभूमि” कहा गया है। वैदिक वाङ्मयों के साथ-साथ नवीनतम वैज्ञानिक साक्ष्यों का समवेत में अवलोकन करें तो स्पष्ट होता है कि सप्तसैंधव प्रदेश कश्मीर से पंजाब, हरियाणा, गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश तक (जिसे देवभूमि, देवकृत योनिक्षेत्र, सप्तसिंधु के क्षेत्र भी कहा गया) की भूमि आर्यभूमि थी। यही” प्राचीनतम सभ्यता वाली आर्यभूमि”, आरंभतः” याज्ञिक सभ्यता की भूमि”, ब्रह्मर्षि देश की भूमि और देविका प्रदेश के नाम से भी उद्धृत की जाती रही है।

आर्यभूमि ही आरम्भ में ब्रह्मावर्त के नाम से भी अधिनामित हुई थी। वैदिक वाङ्मयों में जिस भू-क्षेत्र के लिए भारत उल्लेखित है, उसको” ब्रह्मर्षि देश” भी कहा गया है। यह ब्रह्मर्षि देश भी वस्तुतः ब्रह्मावर्त ही था। ब्रह्मावर्त के ही प्रथम प्रजापति स्वायम्भुव मनु के नाम पर अथवा दूरस्थ क्षेत्रों को संघटित करने वाले उनके प्रपौत्र भरत के नाम पर इस भूमि को” भारतवर्ष” नाम से अभिहित किया गया।

Jambudweep

अनेक पुराणों में भी भारत को” जम्बूद्वीप का भरतखण्ड” (“जम्बूद्वीपे भरतखण्डे…..”) कहा गया है। भारतीय पूजा-पाठ में प्रथमतः कहे जाने वाले संकल्पमंत्र में भी” जम्बूद्वीपे भरतखण्डे…..” ही कहा जाता है।

बौद्ध मनीषी भारत को” जम्बूद्वीप” कहते थे। तमिल भाषी जम्बूद्वीप को” नावलंतीव” नाम से नामांकित करते हैं जो तमिल भाषा में भारत का ही पर्यायवाची है। वे शंभूदेवी इसकी अधिष्ठात्री देवी को बताते हैं जो पार्वतीजी का ही एक नाम है।

विभिन्न पुराण आदि में भारत के लिए भारतवर्ष शब्द का प्रयोग हुआ है। प्राचीनकाल में भारत देश के भूखंड (=वर्ष ) को भारतवर्ष नामकरण होने से पूर्व “हिमवर्ष” या और” अजनाभ वर्ष” कहते थे। अजनाभ वर्ष अर्थात सिसृक्षा की कारयित्री शक्ति” अज” की नाभि अर्थात” सृष्टिकर्ता की धरती” प्रतीत होता है कि “वर्ष” शब्द भारत के भौगोलिक परिपेक्ष्य में प्रयुक्त किया गया है। वर्ष =देश के अर्थ में भारत के साथ वर्ष शब्द महाभारत, मतस्यपुराण, मार्कण्डेपुराण, वायुपुराण, विष्णुपुराण आदि में अनेकत्र उल्लिखित है।

भारतवर्ष के हिन्दुस्थान के संबोधन का संबंध भारत के भौगोलिक विस्तार से बताते हुए हमारे ‘वृहस्पति आगम’ नामक ग्रन्थ में कहा गया है कि हिमालय से ”हि”, इन्दु सरोवर (कन्याकुमारी अन्तरीप से” न्दु” लेकर देवनिर्मित विस्तृत स्थल का नाम बना था” हिन्दुस्थान)l

संवत 733 में विरचित जैनग्रंथ” निशीथचूर्णि” में भारतवर्ष के लिए” हिन्दुग” (हिन्दु -जान के विस्तार /गंतव्य क्षेत्र ) शब्द का प्रयोग किया गया है।

Jambudvipe Bharatkhande

भारतवर्ष को विदेशियों द्वारा अनेक नाम प्रदत्त किए गए हैं। जैसे कि -इन्डोस,इन्दोई,इन्दु ,इन्डो ,इनतु, शिन -तु , थि -एन -चु, हफ्तहिन्दुकन, हिन्द देश, हिन्दूस्थान, हिन्दुस्तान, हिन्दोस्तान आदि। उल्लेख है कि भारत के इन्डोई, इन्डो या इंतुको आदि सभी नामकरण सम्मानजनक थे; लेकिन जब अंग्रेज व यूरोपियन यहाँ के शासक बने तो उन्होंने भारतीयों को हत-तेज करने के लिए भारत को ”India” कहना आरम्भ कर दिया।

1800 ईसा पूर्व के प्राचीन अरबी कवि लबी -बिन -ए -अख्तब -बिन -ए -तुरफा की लम्बी कविता में भारत भूमि को सम्मान सहित” हिन्दू -देश” कहा गया है। प्राचीन शषा ( आधुनिक सूसा ) के राजमहल में उल्लिखित एक लेख में भारत के लिए” हिन्दुउव” लिखा है।

पैकुली नामक स्थान से सासानी राजाओं के पहलवी भाषा में लिखित एक अभिलेख में” भारतवर्ष” को” हिन्दु” ( देश) लिखा गया है।

486 ईसा पूर्व के ( सामी धर्म -दर्शन के आविर्भाव और हजo ईसा, मूसा ,मोहम्मद साहब के उद्भव के बहुत -बहुत पूर्व के काल के ) पर्सिपोलिस स्तम्भ में भी इसी” हिन्दू /हिन्द देश” के गुणगान उल्लिखित हैं।

पारसीक आदि ग्रंथों में भारतवर्ष के लिए हिन्दुउव, हिन्दुव ,हिन्दुश,हिन्द उल्लेखित है जो एक ही भू -भाग : भारत के विभिन्न नाम हैं।

प्लेटो ने भारत को” इन्दोई (Indoi )” अर्थात ‘इन्दु =पूर्णिमा के चाँद ‘ जैसा देश कहा था। वर्जिल ने भारत को इन्द (Ind) कहा है जो प्रतीत में ‘इन्दु (=पूर्णिमा का चाँद ) का अपभ्रंश है। मिल्टन ने भारत को” इन्डो (Indo)” कहा है।

चीन-निवासियों ने भारतवासियों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से प्रभावित होकर भारत के अनेक आदरणीय नाम दिए हैं। चीनी इतिहासकारों के अनुसार विक्रम सम्वत 182 ( 125 ई० ) में चीनी सेनापति पणयोड ने अपने सम्राट को भारतवर्ष का परिचय देते हुए भारत को” थि -एन -चु को” (देवों का देश ) कहा था और बताया था कि यह ‘थि -एन -चु ‘ देश ‘शिन -तु ‘ नाम से भी प्रसिद्द है। चीनी साहित्य में ‘शिन -तु देश ‘ को ही ‘ इन -तु -को (इंतु -को =इंतु देश ‘) लिखा गया है ( चीनी भाषा में ‘को ‘ का अर्थ है” देश”)l चीनी यात्री ह्वेनत्सांग भारत को” शिंतु” तो कहते ही हैं , वे इसे” शिनाऊ” नाम भी देते हैं।

प्रसंगित उल्लेखों के मध्य उल्लेख है यह भी कि अंग्रेज/यूरोपीय द्वारा भारत को दिया गया नाम ‘India (In+dia )’ भी अपभ्रंशित नामांकन -शब्द ही है जो सम्मान्य ‘इन्डोस (Indos )’, इन्डोई (Indoi )’, ‘इन्डो(Indo)’,’इन्ड /इन्द (Ind )’ शब्दों को गर्हित के कद -उदेश्य से प्रयुक्त प्रतीत होता है।

वस्तुतः” In” उपसर्ग से प्रारम्भ होने वाले अंग्रेजी के शब्द प्रायः निकृष्ट अर्थों में ही अर्थान्वित होते हैं। यथा – ‘Indiscipline, Insensitive,Ineffective ‘आदि। अतः India (In+dia =निश्चित व्यास में रहने वाले (कूपमण्डूक )शब्द -नाम यूरोपियों ने भारत को गर्हित बताने के लिए गर्हित अर्थों में प्रयुक्त किया था भारतवासियों को हत -तेज /निस्तेज करने के लिए विशेषकर तब जब वे यहाँ के शासक बनने को उद्यत हुए जबकि मिल्टन युग तक (17 वीं शती ई० तक) वे भारत को” इन्डोस (Indos ), ‘इन्डोई(Indoi )’ इन्ड/इंद (एंड)’, ‘इंडो (Indo )’ जैसे सम्मानित शब्द नामों से संज्ञायित करते थे।

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