लेखक की कलम से

प्रकृति का श्रृंगार …

आओ चलो सब मिलकर प्रकृति का नव श्रंगार करते हैं,

इन फिजाओं, हवाओं बादलों से बातें दो चार करते हैं।

 

प्रकृति से मिले संसाधन सिर्फ किसी एक के लिए नही वरन सभी के लिए होते हैं,भले ही कोई गरीब हो या अमीर, इसलिए प्रकृति का सम्मान करें, उसका श्रंगार करें और भावी पीढ़ी तक उसे पूरे सोलह श्रृंगार करके ही सौंपे…

 

कहते हैं इंसान जिस परिवेश में पैदा होता है बड़ा होता है उसके अंतर्मन में उसकी छाप हमेशा रहती है। मेरा भी जन्म एक छोटे से कस्बे में हुआ और काफी हद तक हम प्रकृति के करीब रहे उससे लगाब भी रहा …. जो आज भी काफी हद तक है।

 

हमारे दादा परदादा की एक कुटिया हुआ करती थी जब कभी हम बच्चे कुटिया पर जाते हैं तो चारों तरफ घिरे घने लंबे वृक्षो पर चढ़कर बैठ जाते,खेलते कूदते तो असीम आनंद का अनुभव करते,एक अलग सी उर्जा से भर जाते और यकीन मानिए वह आनंद जो  हमें मिला, शायद ही आज के बच्चों को किसी वाटर पार्क या माँलो  में मिलता हो।

 

आज भी जब कभी निकलती हूं गांव की तरफ तो महसूस होता है वहां एक अलग सा सुकून- शांति जो हमें कभी नहीं मिल सकता इस शहरी जीवन में  शायद तथाकथित योगासेंटरो में भी…

 

गांव में आज भी लोग सिर्फ अपने घर या सिर्फ सजावट के लिए पौधारोपण या वृक्षारोपण नहीं करते वे सही जगह सही वृक्ष लगाकर जीवन को सार्थक करते हैं। आपने देखा होगा गांव में भले ही आंगन छोटे हो, लेकिन घर के बाहर दो या चार वृक्ष अवश्य होंगे जो आने वाली पीढ़ी को आधार दे सकें।

 

इसके विपरीत शहरों में इंसान सिर्फ अपने घर या लाँन की सजावट के लिए पौधे लगाते हैं जो ज्यादातर उनके घरों की ही शोभा बढ़ाते हैं,माना कि काफी हद तक उससे हरियाली भी होती है और इंसान को संतुष्टि भी मिलती है ..लेकिन हर इंसान को यह समझना चाहिए कि पहली पीढ़ी द्वारा तैयार किया हुआ अनुष्ठान रूपी वृक्षारोपण से ही हमारा पालन-पोषण हो रहा है और हमें भी आने वाली पीढ़ी के लिए ठीक इसी तरीके से इस परंपरा का निवार्ह करते हुए इसे आगे बढ़ाना है….

 

कहने को तो आज इंसान ने बहुत प्रगति कर ली, लेकिन इस प्रगति के बाद भी इंसान के हर कार्य में स्वार्थ निहित है, अपवाद हर जगह हो सकते हैं.. लेकिन जितना इंसान प्रगति की ओर अग्रसर हुआ है उतना ही स्वार्थी भी हुआ है।

 

हम क्या करते हैं, हम समझते हैं कि सिर्फ पैसा कमा कर हम सब कुछ खरीद सकते हैं लेकिन नहीं, चाहे हम कितनी भी उन्नति कर लें, लेकिन हमें अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए निस्वार्थ कुछ कार्य करनी होंगे।

 

हमारे शास्त्रों में भी लिखा है कि हर इंसान को अपने जीवन काल में कम से कम पांच अनमोल वृक्ष अवश्य रोपने चाहिए और उनकी आजीवन देखभाल करनी चाहिए ।

 

शायद हमारे पूर्वजों को पहले से ही अनुमान था कि आने वाली पीढ़ी किस कदर बेपरवाह और स्वार्थी होगी।मैं बहुत अचरज में  होती हूं जब मैं कभी इस बात पर मंथन करती हूं कि हमारे पूर्वज बेशक पढ़े-लिखे ज्यादा नहीं थे, लेकिन उनके पास ज्ञान का अथाह भंडार था, उनके अनुभवों की वजह से ही आज हम इतना समर्थ है,तो हमें भी यह समझना होगा कि आसमानी तरक्की भी तभी मायने रखती है,जब हम हरी भरी धरती पर खड़े होकर उसे पा सके…

 

मेरी आज की पीढ़ी से प्रार्थना है कि हम खुद भी समझे और अपने बच्चों को भी समझाएं कि किस तरह हमें प्रकृति का श्रृंगार करना होगा जिससे कि आने वाली पीढ़ी को प्रकृति का सुंदर उपहार दे सके।

 

हमें एक बार फिर से अपनी जड़ों की तरफ लौटना होगा प्रकृति की गोद में, उस गोद में जो आज भी एक मां की तरह अपने बच्चों पर अमृत बरसाती है, बस हमें उसे अपनी मां का दर्जा देते हुए उसकी अच्छी संतान होने का दायित्व निभाना होगा….

 

 

©ऋतु गुप्ता, खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश

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