लेखक की कलम से

एक बार फिर से सुभाष मांगता है ये देश…….

हे सुभाष तुम वापस आओ
क्रांति का फिर बिगुल बजाओ

भ्रष्टाचार की फैली बीमारी
त्रस्त हुई है जनता सारी
आकर फिर से राह दिखाओ
हे सुभाष तुम वापस आओ
क्रांति का फिर बिगुल बजाओ।

मृत हुई संवेदना सबकी
पथभ्रष्ट हुए यहां युवा व युवती
आकर इनका स्वाभिमान जगाओ
हे सुभाष तुम वापस आओ
क्रांति का फिर बिगुल बजाओ।

आपसे आज यदि नेता यहां होते
सपने सबके यूं ना रोते
आकर ऐसी फौज बनाओ
हे सुभाष तुम वापस आओ
क्रांति का फिर बिगुल बजाओ।

खून खोले जनमानस का
लहू से लिख दे नाम भारत का
ऐसा नारा फिर दे जाओ
हे सुभाष तुम वापस आओ
क्रांति का फिर बिगुल बजाओ।

भरो हुंकार फिर से ऐसी
छाती फट जाए दुश्मन की
तिरंगे की तुम शान बढ़ाओ
हे सुभाष तुम वापस आओ
क्रांति का बिगुल बजाओ।

©ऋतु गुप्ता, खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश

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