तुम्हें लौटना होगा …
जब तुम पैदा हुए थे
रख दी थी पिता ने
श्रवण परंपरा की कांवर
अपने कांधे से तुम्हारे कांधे पर
पृथ्वी की परिक्रमा करते
भूल गए तुम,
तुम्हारी अंतरिक्ष यात्रा पूरी होगी उसी गोबर लिपे आंगन में
जहां से
टेक ऑफ किया था तुमने
विदा से पहले दिया था
सब ने तुम्हें अपने अपने हिस्से का भाग्यदान
मां ने तो उम्र तक दे डाली थी, बहन ने ले ली थी
सारी बलाएं अपने सिर
दादी ने कहा था- मेरे भागीरथ …
और गांव ने लगा दी थी
तुम्हारी पीठ पर
गोबर के हाथ की थाप
कब लौटाओगे इतना उधार….
मां रुकी नहीं
तुम्हें उम्र देने के बाद
बहन लौटी नहीं सशरीर
दादी तर गई
पीढ़ियों के तरने के प्रमाण सी मगर भोला गांव …
आज ही खोजता है तुम्हें
देखता है जब भी आकाश में हवाई जहाज …
फैला देता है बांहें जैसे कि, हर हवाई जहाज तुम्हारा पर्याय है
आओ लौट आओ
मुखाग्नि और पिंडदान का हकदार स्वप्न थामें …
तुलसी गंगाजल की प्रतीक्षा में खड़ी है अंतिम पड़ाव पर
अभी भी थरथराती सांसे
परंपरा की कांवर में
आस्था जोड़ें …
©विद्या गुप्ता, दुर्ग, छत्तीसगढ़विशाल
परिचय- जन्म स्थान उज्जैन, मध्य प्रदेश. हिंदी और इतिहास में एमए. दो काव्य संग्रह-और कितनी दूर व पारदर्शी होते हुए. देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाएं में रचनाओं का प्रकाशन।