लेखक की कलम से

आज भी मारी जाती है लडकियां, गणेश राख जैसे डॉक्टर बचा चुके है हजारों लड़कियां ….

पुणे । (हेमलता म्हस्के) । हमारे समाज में लड़कियों के लिए समस्याएं आज भी कम नहीं है। वे आज भी जन्म से पहले और जन्म के बाद भी मारी जाती हैं। लड़के के मुकाबले लड़कियों की संख्या आज भी बराबर नहीं हो पा रही है। लड़का लड़की में भेदभाव हमारे जीवन मूल्यों की भयंकर खामियों को दर्शाता है। उन्नत कहलाने वाले राज्यों में ही नहीं बल्कि प्रगतिशील समाजों में भी लिंगानुपात की स्थिति चिंताजनक है। देश के कुछ समृद्ध राज्यों में आज भी बालिका भ्रूण हत्या की जा रही है। लिंग आधारित भेदभाव की बुनियाद पर खड़े समाज में जन्म लेना किसी भी लड़की के लिए सबसे कठोर सजा होती है। यही भेदभाव जब चरम पर पहुंचता है तो कहीं नवजात बेटी की हत्या और कहीं भ्रूण हत्या का रूप ले लेता है।

इतिहास बताता है कि बेटियां सदियों से मारी जाती रही है। पहले जन्म लेने के बाद मारी जाती थी और आज जन्म लेने से पहले वैज्ञानिक तकनीक से लिंग का पता चलते ही उन्हें मार दिया जाता है। लड़कियों की हत्या के लिए केवल मां-बाप ही दोषी नहीं है बल्कि हमारा समाज दोषी हैं, जो बेटे को सहारा और बेटियों को बोझ मानता है। लड़की का जन्म और जीवन दोनों को ही अपना देश और दुनिया के विभिन्न देशों के समाज में अभागा समझा जाता है। आज भी कम नहीं है ऐसे परिवार, जहां लडके के जन्म पर जश्न मनाया जाता है और लड़कियों के जन्म पर मातम मनाया जाता है। इस भेदभाव को लेकर समाज में कई तरह की कहावतें हैं जो बेटियों के खिलाफ लोगों की धारणा मजबूत करती रहती है। जरूरत है ऐसी धारणा और परंपरा के खिलाफ जागृति अभियान चलाने की।

संयुक्त राष्ट्र बालकोष यूनिसेफ की रपट (राष्ट्रों की प्रगति 1997) में कहा गया था कि अतीत के वर्षों में करीब छह करोड़ लड़कियों और महिलाओं की केवल इसलिए मौत हो गई या हत्या कर दी गई क्योंकि उन्होंने एक मादा या स्त्री के रूप में जन्म लिया था। यही जानें अगर लडके के रूप में पैदा होती तो उनका जन्मदिन मनाया जाता और उसके स्वागत खुशियां मनाई जाती और मिठाई बांटी जातीं। बेटे को पुत्र रत्न, कुलदीपक और घर का चिराग कहा जाता है। उनकी दीर्घायु के लिए दुआएं मांगीं जाती है।

वहीं लड़की के रूप में जन्म लेती हैं तो परिवार में मातम छा जाता है। लड़की को जन्म देने वाली माता पर तरह तरह ताने कसे जाते हैं। लड़का होता तो कमाई करता और दहेज लाता। लड़की तो दहेज लेकर जाएगी। यहां तक कहा जाने लगता है कि बेटी को घर में ही मार देना चाहिए, कहां से जुड़ेंगे और जुटाएंगे इसकी शादी और दहेज का खर्चा।

हालांकि शिक्षा के प्रचार प्रसार से कुछ बदलाव आ रहा है लेकिन इस दिशा में अभी भी बहुत प्रयास करने की जरूरत है। केंद्र सरकार ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया है। लोग भी जागरूक हो रहे हैं। डा गणेश राख जैसे डॉक्टर इस दिशा में प्रभावी भूमिका निभा रहे है। उनके और सरकारी प्रयासों से अपने देश में हालत बदल रही है।

1961 में, सात साल से कम उम्र के प्रत्येक 1,000 लड़कों के लिए 976 लड़कियां थीं। 2011 में जारी नवीनतम जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, यह आंकड़ा घटकर 914 हो गया।

महाराष्ट्र के पुणे के रहने वाले डॉ. गणेश राख कई भारतीय डॉक्टरों में से एक हैं जिन्होंने माता-पिता, रिश्तेदारों और यहां तक ​​कि पति के चेहरे से मुस्कुराहट गायब होते देखी है, जब उन्होंने उन्हें बताया कि परिवार में एक लड़की का जन्म हुआ है।

उन्होंने कई परिवारों से सुना कि उन्होंने तांत्रिकों और दैवीय स्थानों का दौरा किया और यह सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न अनुष्ठानों का आयोजन किया कि परिवार में कोई लड़की पैदा न हो। डॉ. गणेश राख ने देखा कि परिवार तब मिठाईयां बांटते हैं जब उनके यहां लड़का पैदा होता है और लड़की के पैदा होने पर अस्पताल से बाहर निकल जाते हैं, जब वह बीमार हो जाती है तो डॉक्टर से छूट की मांग करते हुए वह उन पर मजबूर हो जाते हैं।

इकोनॉमिक सर्वे ऑफ इंडिया (2017-18) ने अनुमान लगाया कि पिछले 10 वर्षों में 63 मिलियन महिला भ्रूण हत्या हुई हैं।

ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2016 के अनुसार, भारत लैंगिक समानता में 87 वें स्थान पर है और यह चौंकाने वाला है कि देश में 63 मिलियन लापता महिलाएं और 21 मिलियन अवांछित लड़कियां हैं। भारत में तिरछे लिंगानुपात के कारण लिंग-संबंधी भेदभाव में भी वृद्धि हुई है।

डा राख कहते हैं कि यह कन्या भ्रूण हत्या नहीं है, यह नरसंहार है।

3 जनवरी 2012 में, डॉ. गणेश राख ने भारत में अपना ‘मुल्गी वचवा अभियान’ / ‘बेटी बचाओ जन आंदोलन’ / ‘सेव द गर्ल चाइल्ड’ अभियान शुरू किया।

डॉ. गणेश राख के अस्पताल (मेडिकेयर हॉस्पिटल, पुणे) में जब भी किसी बच्ची का जन्म होता है, तो सारी फीस माफ कर दी जाती।

डॉ. राख बताते हैं, “मैंने फैसला किया कि अगर बेटी का जन्म हुआ तो मैं कोई शुल्क नहीं लूंगा। इसके अलावा हमने तय किया कि हम अस्पताल में बेटी के जन्म का जश्न मनाएंगे।”

जिस तरह परिवारों ने एक बच्चे के जन्म का जश्न मनाया, डॉ. गणेश राख सुनिश्चित करते हैं कि उनका अस्पताल खुद मिठाई, केक, फूल और मोमबत्तियों के साथ हर लड़की के जन्म का जश्न मनाए।

इस अभियान की शुरूआत और सबसे बड़ी बाधाओं के बारे में डॉ. गणेश राख के सहयोगी और ‘बेटी बचाओ जन आंदोलन’ के राष्ट्रीय मार्गदर्शक डॉ. प्रमोद लोहार बताते हैं, “शुरुआती दिनों में, हर कोई हमें ‘मैड डॉक्टर’ कहता था।”

डॉ. गणेश राख और ‘बेटी बचाओ जन आंदेलन’ के राष्ट्रीय मार्गदर्शक डॉ. प्रमोद लोहार बताते हैं कि “एक बार जब हमारी कहानी ने भारत और विदेशों में लोगों का ध्यान खींचा, तो हजारों ने सलाह के लिए हमसे संपर्क किया और गुजरात, कर्नाटक, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड और पंजाब में अपने क्षेत्रों में इसी तरह के कार्यक्रम शुरू किए। हमारे लिए सबसे बड़ी प्रशंसा अंतर्राष्ट्रीय डॉक्टर हैं जो विभिन्न देशों में इसी तरह के ‘सेव गर्ल चाइल्ड’ अभियान शुरू कर रहे हैं।”

उनकी इस नेक मुहिम ‘बेटी बचाओ जन आंदोलन’ से देश-विदेश से करीब 2 लाख से अधिक निजी डॉक्टर, 12 हजार एनजीओ और 1.75 मिलियन स्वयंसेवक जुड़ चुके हैं और लड़कियों को बचाने के उनके प्रयासों में योगदान दिया है

डॉ. प्रमोद लोहार ने विदेशों में इस तरह के प्रोग्राम के बारे में जानकारी देते हुए बताया, “फरवरी 2019 में, हमने जाम्बिया के लुसाका में एक रैली की, जिसमें जनता को बालिकाओं को बचाने और उनकी सुरक्षा के बारे में शिक्षित किया गया। हालांकि वे कन्या भ्रूण हत्या में लिप्त नहीं हैं। कार्यकर्ताओं ने कांगो, सूडान, केन्या, युगांडा और नाइजीरिया जैसे अन्य अफ्रीकी देशों में ‘सेव गर्ल चाइल्ड’ की मशाल को ले जाने के लिए प्रतिबद्ध किया और अंततः पूरे महाद्वीप को चरणों में कवर किया।”

यह सिर्फ अफ्रीका तक ही सीमित नहीं रहा। उन्होंने बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान में अपना संदेश फैलाया। इसके साथ ही इसी साल अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी इसी मुहिम के तहत रैलियां होनी थी, लेकिन कोरोनावायरस महामारी के चलते सारे कार्यक्रम स्थगित करने पड़े।

डॉ. गणेश राख का जन्म गरीब परिवार में हुआ। उन्होंने अपनी पूरी शिक्षा छात्रवृत्ति के जरिए पूरी की।

डॉ. गणेश राख खुद मानते हैं कि ऐसी सेवाओं को चलाना कभी आसान नहीं होता है। लेकिन उन्हें उनके पिता की सीख याद है, जिन्होंने उनसे कहा था कि उन्होंने (डॉ. गणेश राख ने) जो अच्छा काम किया है, उसे आगे बढ़ाते रहें

उन्होंने आगे यह भी बताया कि हॉस्पिटल में बच्ची के जन्म पर कोई फीस नहीं ली जाती। इसके अलावा 5 साल तक बच्ची और उसके माता-पिता का नि:शुल्क इलाज किया जाता है।

डॉ. गणेश राख की इस पहल के तहत डॉ. राख के हॉस्पिटल (मेडिकेयर) में अब तक करीब 2 हजार से अधिक बच्चियों का जन्म हो चुका है, इनमें से करीब 17 सौ की डिलीवरी खुद डॉ. गणेश राख ने करवाई है। इनके माता-पिता से कोई फीस नहीं लेते।

साल 2016 में डॉ. गणेश राख के ‘बेटी बचाओ जन आंदोलन’ के पाँच साल होने पर उन्हें बीबीसी ने अपने शो “अनसंग हीरोज़” में फीचर किया। इसके अलावा उन्हें स्टार प्लस चैनल के टीवी शो ‘आज की रात है ज़िंदगी’ में बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने सम्मानित करते हुए उन्हें ‘रियल होरो’ बताया।

स्टार प्लस चैनल के टीवी शो ‘आज की रात है ज़िंदगी’ में बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने सम्मानित करते हुए उन्हें ‘रियल हीरो कहा।

डॉ. गणेश राख का कहना है कि कन्या भ्रूण हत्या दुनिया के सबसे बड़े ‘नरसंहारों’ में से एक है। हम निष्क्रिय रूप से नहीं बैठ सकते हैं और लड़कियों और महिलाओं को इस तरह से मरने और उनके साथ भेदभाव होता नहीं देख सकते। लड़कियों को बचाने के लिए, समाज को बचाने के लिए, दुनिया के भविष्य को बचाने के लिए, सभी को स्वेच्छा से ‘बेटी बचाओ जन आंदोलन’ में भाग लेना चाहिए और कन्या भ्रूण को रोकने के लिए माता-पिता को समझाना चाहिए। हम वो बदलाव हैं जो दुनिया को चाहती है।

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