लेखक की कलम से

शर्तों में कब बांधा है तुम्हें…

 

ऐ ! ज़िंदगी.

ये उम्मीद के धागे हैं

कभी तुम नहीं कभी हम नहीं !

 

लेकर चार दोस्त हम जिन्दगी के

कुछ हँसी पल जी लेते हैं

थोड़ा मुस्कुरा कर

खुशी के दो पल जी लेते हैं !

 

तेरी कठिनाइयाँ मुझको

मदहोश कर जाती है

तू हर पल तो साथ नहीं रहती

फिर भी एक पल में ही

बेहोश कर जाती है !

 

वक्त का पहिया

चलते-चलते ठहरने लगता है

मैं लाख सम्भालू इसे

ये मचलने लगता है

@रामजतन मौर्यवंशी, बनारस

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