लेखक की कलम से
देखा है मैंने कभी …
देखा है मैंने कभी वो,
प्यारा सा खलिहान,
जहां झूमते थे हर तरफ,
पेड़ों के बगान,
अब हर तरफ हो रहा,
विरान ही विरान,
वो जमी है अब बंजर,
वहां है हर तरफ अब,
मकान ही मकान,
तड़प उठी जमीं सारी,
उगल रहा अब आग आसमान,
मचल रहा दिल मेरा पाने को,
वही शीतल सी पीपल की छांव,
वो उपवन रंगीले जो थी हमारी जान,
प्रकृति की निशा को,
हर तरफ रौंद रहा इंसान,
क्यों हाथ कांपते नहीं जब,
लेते हैं इनके प्राण,
इनकी कमी से हो रहा,
प्रकृति में असंतुलन,
हो रहा शहर- शहर प्रदूषण की खान,
कब नींद खुलेगी तेरी अब तो,
जाग जाओ इंसान,
देखा है मैंने कभी वो,
प्यारा सा ख्वाब,
जब जाग उठेगी जमीर तेरी ओ इंसान,
फिर लहराएंगे हरियाले वो
खेत और खलिहान……..।।
©पूनम सिंह, नोएडा, उत्तरप्रदेश