लेखक की कलम से

ओ मेरे रब …

 

आज ये पल न जाने, क्यों रूठा हुआ है |

किस गर्दिश का सजा, हमें मिला हुआ है ||

 

दिन में चैन रात की, नींद भी उड़ा चला है |

दुबके मन वादियों में, रौनकता ढूंढ रहे हैं ||

 

पल की नजाकत, भांप लेने की जरूरत है |

करवट तो बदल, मंजिल दहलीज पे खड़ा है ||

 

गमगीन न हो अरे ओ, ये महफिल के परवाने |

न जाने तेरे पथ में, कितने इम्तिहान खड़ा है ||

 

कोई शिकवा न तुझे, ओ मेरे रब परवरदिगार |

जीने की हौसला बक्श, अब हर आदम को दे ||

 

तेरे हर ये उसूल को, कबूल करता हूं आज मैं |

मुझे इस जलजला में, जीने की नई सलिखा दे ||

 

एतबार है तुझसे, न मैं अब तकरार करता हूं |

न जाने तेरे याद में, बेसुध मैं ये द्वार पे खड़ा हूं||

©योगेश ध्रुव ‘भीम’, धमतरी

Back to top button