लेखक की कलम से

बारिश में देखा…

बारिश में देखा

भीगते चेहरों को

हंसते मोहरों को

खिलखिलाते पौधों को

बिलबिलाते पशुओं को

 

बारिश में देखा

भावों के अनकहे एहसासों को

खिलने के अतुलित निशानों को

बढ़ने के अविरल हिसाबों को

बिखरने के असीमित आधारों को

 

बारिश में देखा

गड्ढों से उछलती कीच़डो को

गड्ढों में डूबती टायरों को

शोर में गुम होते घायलों को

गाड़ियों की श्रृंखलाओं को

 

बारिश में देखा

आकाश से गिरते हिमकणों को

उनसे भरते बाल्टी पतिलो को

उड़ते छतरी, उड़ते सपनों को

इधर से उधर हर कोनों को

मैंने बारिश में देखा,,….

 

©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता                            
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