लेखक की कलम से
धन …
दोहा
धन को साधन जानिए,
धन केवल आधार ।
पाएँ धन सत्कर्म से,
ज्ञान बिना बेकार ।।
सच्चे श्रम से प्राप्त धन,
कर दें पंचम भाग ।
मितव्ययी बन जाइये,
फिजूलखर्ची त्याग ।।
प्रथम भाग है धर्म का, पात्रों को कर दान ।
सदा गुप्त रुप दान कर, मानव बनें महान ।।
दूजा तो यश हेतु है, जगहित धन लगवाय ।
अस्पताल, शाला बना, पेड़ खूब उपजाय।।
अर्थ हेतु है तीसरा, करें धनों की वृद्धि ।
व्यापारें, उद्योग अरु, खेती दे समृद्धि ।।
चौथा स्वयं हेतु है, रोटी वस्त्र मकान ।
शेष बंधुओं को दिए, धन बन जाय महान ।।
©रानी साहूरानी, मड़ई (खम्हरिया)