लेखक की कलम से

सवालों के घेरे में सर्व सेवा संघ …

 

गांधी जनों का सर्वोच्च संगठन सवालों के घेरे में आ गया है। महात्मा गांधी की शहादत के बाद उनके द्वारा शुरू की गई संस्थाओं और संगठनों की सक्रियता बनाए रखने और उन्हें नेतृत्व प्रदान करने के मकसद से कायम सर्वोच्च संगठन सर्व सेवा संघ को कभी भी ऐसी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा था। सवाल कोई विरोधी नहीं बल्कि गांधी, विनोबा और जयप्रकाश के अनुयाई और समर्थक ही उठा रहे हैं। वे सवाल उठाने के साथ संघ के स्वरूप को प्रजातांत्रिक और विकेंद्रित बनाने के लिए संघ के पूर्व अध्यक्षों और संघ के ट्रस्टी मंडल को जोड़ कर एक संरक्षक मंडल बनाने और इनकी निगरानी में तत्काल चुनाव कराने की भी मांग कर दी है।

संघ के इतिहास में या पहला मौका है कि संघ के नेतृत्व पर उंगली उठाई गई है। नहीं तो इसके पहले विनोबा और जयप्रकाश नारायण के साए तले विकसित सर्व सेवा संघ में ऐसा कभी नहीं हुआ। पहले बहुत सालों तक संघ का नेतृत्व इतना विराट होता था कि उन पर कभी उंगली नहीं उठी। पहले नेतृत्व जिधर भी चलता, कार्यकर्ताओं की फौज उनके पीछे चल पड़ती थी। संघ का स्वरूप इसकी स्थापना काल में बहुत बड़ा था। खादी और चरखा संघ जैसे राष्ट्रव्यापी संस्थाएं भी इसके अंदर थीं। अब तो वे भी किनारा कर चुकी हैं। गांधी जनों द्वारा लिखे पत्र के मजमुन से ऐसा लगता है मानो भूदान और ग्राम स्वराज्य जैसे राष्ट्र व्यापी आंदोलनों को नेतृत्व और गति देने वाला सर्व सेवा संघ मौजूदा दौर में एकदम निष्क्रिय हो गया हो।

सर्व सेवा संघ महात्मा गाँधी द्वारा या उनकी प्रेरणा से स्थापित रचनात्मक संस्थाओं तथा संघों का मिलाजुला संगठन है, जो उनके बलिदान के बाद आचार्य विनोबा भावे के मार्गदर्शन में अप्रैल 1948 में गठित किया गया यह देश भर में फैले हुए “लोकसेवकों का एक संयोजक संघ” भी है, भले आज लोकसेवकों की संख्या सिकुड़ गई है। इसे अखिल भारत सर्वोदय मण्डल के नाम से भी जाना जाता है। सर्व सेवा संघ का प्रधान कार्यालय महादेव भाई भवन, सेवाग्राम, वर्धा (महाराष्ट्र) में तथा प्रकाशन कार्यालय राजघाट, वाराणसी(उत्तर प्रदेश) में है। वर्ष 1954 में आचार्य धीरेन्द्र मजूमदार संघ के प्रथम अध्यक्ष बने।

सर्व सेवा संघ का उद्देश्य ऐसे समाज की स्थापना करना है, जिसका आधार सत्य और अहिंसा हो, जहाँ कोई किसी का शोषण न करे और जो शासन की अपेक्षा न रखता हो। यह शान्ति, प्रेम, मैत्री और करुणा की भावनाओं को जाग्रत करते हुए साम्ययोगी अहिंसक क्रांति के लिए स्वतंत्र जनशक्ति का निर्माण तथा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक साधनों का उपयोग करना चाहता है। समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना और समय मानव व्यक्तित्व का विकास करना संघ की बुनियादी नीति है। इसके लिए संघ का प्रयत्न रहेगा कि समाज में जाति, वर्ण, लिंग आदि तत्वों के आधार पर ऊँच नीच का भेदभाव निर्मूल हो, वर्ग-संघर्ष के स्थान पर वर्ग-निराकरण और स्वेच्छा से परस्पर सहकार करने की वृत्ति बढ़े तथा खादी तथा विकेंद्रित अर्थव्यवस्था के माध्यम से कृषि, उद्योग आदि के क्षेत्र में आर्थिक विषमता का निरसन हो।

संघ के इन व्यापक उद्देश्यों के पूरे नहीं होने पर चिंता व्यक्त करते हुए गांधी जनों की ओर से सामूहिक रूप से लिखे पत्र में सर्व सेवा संघ के वर्तमान नेतृत्व पर सीधा आरोप लगाया गया है कि मौजूदा परिस्थिति में सर्व सेवा संघ अपने मूल उद्देश्यों को पाने में पूरी तरह से विफल रहा है।

राजीव,लखनऊ, रामशरण, भागलपुर,प्रभात, पटना,रामधीरज, इलाहाबाद, पुतुल, उन्नाव,वीरेंद्र विद्रोही,राजस्थान और प्रदीप खेलुलकर, महाराष्ट्र आदि द्वारा लिखे गए सामूहिक पत्र में कहा गया है कि आज हमारा देश कई गंभीर संकटों से गुजर रहा है। पिछले कुछ वर्षों में सांप्रदायिकता में अभूतपूर्व तेजी आई है। दलितों और आदिवासियों पर हमले बढ़ गए हैं। महिलाओं का शोषण और उत्पीड़न भी बढ़ा है। उपभोक्तावाद और बेतरतीब औद्योगिक चलते पर्यावरण को गंभीर क्षति पहुंच रही है। किसानों को आत्महत्या करना पड रही है। ऑनलाइन कंपनियों और अमेज़न आदि के कारण छोटे व्यापार और छोटे उद्योग तेजी से समाप्त हो रहे हैं। असंतुलित विकास के कारण लोग प्रवासी मजदूर बनने के लिए विवश हो रहे हैं। सरकारें अंतिम जन की नहीं, देसी विदेशी उद्योगपतियों की प्रतिनिधि बन गई है। इन सभी कारणों से लोकतंत्र ही नहीं हमारी आजादी खतरें में पड़ गई है। और ऐसे में सर्व सेवा संघ का मौजूदा नेतृत्व जन प्रतिरोध कायम करने में पूरी तरह से विफल रहा है।

 

    ©प्रसून लतांत   

 

Back to top button