लेखक की कलम से

नाम -अनाम …???

 

 चुपके चुपके उतर रही है

 मोरपंखिया शाम

चंचल मन के उपवन मे

महका कोई नाम ।।

 

पेड़ों की फुलगी पर बैठे

पक्षी रंग रंगीले

जाने किसकी बाट जोहते

उंचे पर्वत टीले

पीड़ा के हिस्से में आया

मानो पूर्ण विराम ।।

 

उमड़ घुमड़ श्याम व्याम

बदरा घिर घिर आए

‘आप’ ‘तुम’ फिर रिश्ते

 ‘ तु ‘ से जुड़ इतराए

अब तो इच्छा दे दूं उसको

 संज्ञा एक ‘अनाम ‘।।

 

सपनों मे अम्रृत सा निर्झर

अधर हंसी का डेरा

पल पल बढते स्नेह प्रेम का

घर अंगना में फेरा

उसकी चाहत से पाए मैंने

नये नये आयाम ..।।

       

         चुपके चुपके उतर रही है

         मोरपंखिया शाम …

©डॉ. सुनीता मिश्रा, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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